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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारक-निरूपण ___३३१ कम' कारक की परिभाषा में 'योग्यताविशेष-शालित्वम्' और जोड़ना चाहिये] ननु काशीं गच्छति चेत्रे 'चैत्रः काशीं गच्छति न प्रयागम्' इति प्रयोगानुपपत्तिः, प्रयागस्य फलाश्रयत्वेन उद्देश्यत्वाभावाद् इति चेत् ? उच्यते कर्मलक्षणे 'ईप्सिततम'पदस्य 'स्वार्थ विशिष्ट-योग्यता-विशेषे' लक्षणा । तथा च 'प्रकृत-धात्वर्थ-प्रधानीभूत-व्यापार-प्रयोज्य-प्रकृत-धात्वर्थफलाश्रयत्वेन उद्देश्यत्व-योग्यता-विशेष-शालित्वं कर्मत्वम्'। तच्च प्रयागस्याप्यस्ति इति कर्मत्वं तस्य सुलभम् । काशी को जाते हुए चैत्र के लिये 'चैत्रः काशी गच्छति न प्रयागम्' (चैत्र काशी जाता है प्रयाग नहीं) इस प्रयोग की सिद्धि नहीं हो पाती क्योंकि फलाश्रयता की दृष्टि से चैत्र का उद्देश्य प्रयाग नहीं है-यदि यह कहा जाय तो वह उचित नहीं है । कारण यह है कि 'कर्म' के लक्षण ("कर्तुर् ईप्सिततमं कर्म" (पा० १.४.४६ इस सूत्र) में 'ईप्सिततम' पद की ‘स्वार्थ से युक्त योग्यताविशेष' अर्थ में लक्षणा है। इस रूप में "प्रस्तुत धातु के अर्थ प्रधानभूत 'व्यापार' से प्रयोज्य, प्रस्तुत धातु के अर्थ, 'फल' की आश्रयता के उद्देश्यता के सामर्थ्य विशेष से युक्त होना 'कर्मता' है"। और यह 'कर्मता' प्रयाग में भी है इसलिये उस (प्रयाग) की 'कर्म' संज्ञा सुलभ है। ऊपर 'कर्मत्व' की जो परिभाषा दी गयी उसके अनुसार 'चैत्र: काशी गच्छति न प्रयागम्' इस प्रयोग में 'प्रयाग' की कर्मसंज्ञा नहीं सिद्ध होती क्योंकि 'फल' की आश्रयता के रूप में जाने वाले का उद्देश्य काशी है न कि प्रयाग। इस अनुपपत्ति के समाधान के लिये, पाणिनि के "कर्तुरीप्सिततमं कर्म" सूत्र के, 'ईप्सिततमम्' पद में लक्षणा का सहारा लेकर उसका 'ईप्सिततमता (योग्यताविशेष) से युक्त' अर्थ किया गया। इस 'योग्यता-विशेष' से युक्त होने की क्षमता जिसमें होगी, भले ही वह फलाश्रयता रूप से उद्देश्य न हो फिर भी, उसकी 'कर्म' संज्ञा स्वीकार कर ली जाएगी। ईप्सिततम' पद की इस लाक्षणिक व्याख्या के अनुसार उपर की परिभाषा में भी 'योग्यताविशेषशालित्व' अंश और जोड़ दिया गया। अब, प्रयाग में यह 'योग्यता-विशेष' है कि वह फलाश्रयता रूप से उद्देश्य बन सके। इसलिये प्रयाग की 'कर्म' संज्ञा हो जायगी, भले ही यहां 'चैत्रः काशीं गच्छति न प्रयागम्' इस प्रयोग में फलाश्रयत्वेन उदिष्ट न भी हो। [कुछ अन्य प्रयोगों में 'कर्मत्व' को उपपत्ति] एतेन कार्यान्तरं कुर्वति चैत्रे 'किं ग्रामं गच्छति अथवा प्रोदनं पचति ?' इति प्रश्ने 'न ग्रामं गच्छति न प्रोदनं १. ह. में 'प्रयोगानापत्ति:' पाठ है। २. ह० में अनुपलब्ध। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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