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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लकारार्थ - निर्णय 'नंक्ष्यति' इत्यादि (प्रयोगों) में वर्तमान कालीन 'प्रागभाव' के 'प्रतियोगी' (क्रिया) की उत्पत्ति का ( आश्रय ) होना तथा 'प्रतियोगिता' (ये दोनों 'लुट्' ' तथा लृट्' इन दो ) प्रत्ययों के अर्थ हैं । 'इवो वटो नंक्ष्यति' (कल घड़ा फूटेगा ) इत्यादि ( प्रयोगों) में 'कल होने वाली, वर्तमान कालीन प्रागभाव की प्रतियोगिनी जो नाश रूप क्रिया उस की उत्पत्ति के आश्रय 'नाश' का प्रतियोगी, 'घट' यह शाब्दबोध होता है । 'वर्तमान-कालीन प्रागभाव की प्रतियोगिता ही 'लृट्' प्रत्यय ( लकार) का अर्थ है' वह (मत) ठीक नहीं है क्योंकि ( तब तो ) कल नष्ट होने वाले घड़े के लिये भी 'अद्य नक्ष्यति' (आज घड़ा नष्ट हो जायेगा ) यह (प्रयोग) होने लगेगा । २६१ 'नश्' जैसी प्रदर्शन अर्थ वाली धातुनों के साथ जब 'लृट्' प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है तो वहां यह प्रत्यय दो प्रर्थों को कहता है । पहला अर्थ है - 'वर्तमानप्रागभाव - प्रतियोग्युत्पत्तिकता', अर्थात् वर्तमान कालीन प्रागभाव की 'प्रतियोगिनी' जो ('नाश' क्रिया की ) उत्पत्ति उसका प्राश्रय अर्थात् 'नाश'। दूसरा अर्थ है - 'प्रतियोगिता', अर्थात् 'नाश' या प्रदर्शन रूप क्रिया का प्राश्रय ( घट ग्रादि ) । इन दोनों अर्थों का सम्मिलित ज्ञान 'लूट' प्रत्यय कराता है । उदाहरण के लिये 'श्वः घटो नंक्ष्यति ( कल घड़ा फूटेगा ) यहाँ 'नाश' या 'प्रदर्शन' क्रिया का वर्तमान कालीन जो 'प्रागभाव' उसकी 'प्रतियोगिनी है 'नाश' क्रिया । उस की उत्पत्ति के प्राश्रयभूत काल 'श्व:' ( आने वाला कल) का, तथा प्रतियोगिनी जो नाश या प्रदर्शन क्रिया उसके प्रतियोगी ('घट') इन दोनों का ज्ञान 'लृट्' प्रत्यय से होता । यदि केवल 'वर्तमान- प्रागभाव की प्रतियोगिता' ही 'लृट्' प्रत्यय का अर्थ माना जाय तब तो कल नष्ट होने वाले घड़े के लिये भी 'अद्य 'नंक्ष्यति' प्रयोग हो सकता है क्योंकि वर्तमान-कालीन जो 'प्रागभाव' उसकी 'प्रतियोगिनी', अर्थात् 'नाश' क्रिया, की उत्पत्ति का प्राश्रयभूत 'घट' तो ग्राज भी रहेगा ही । भले ही उसका नाश कल हो परन्तु कल होने वाली नाशोत्पत्ति रूप 'प्रतियोगी' का आश्रय बनने वाला घट तो ग्राज भी होगा ही । उपर्युक्त 'वर्तमान- प्रागभाव- प्रतियोग्युत्पत्तिकत्व' तथा 'प्रतियोगी' ये दोनों अर्थ 'लृट्' प्रत्यय के हैं यह मानने पर उपरिनिर्दिष्ट दोष नहीं आता क्योंकि वहाँ तो 'नाश'रूप क्रिया की उत्पत्ति के काल को भी 'लृट्' प्रत्यय बतायेगा । इसलिये 'घटोऽद्य नंक्ष्यति' का इतना ही अर्थ नहीं होगा कि 'किसी भी समय में उत्पन्न नाश रूप क्रिया की उत्पत्ति का आश्रय घट' प्रपितु देश तथा काल का भी 'उत्पत्ति' के साथ अन्वय होने के कारण यह अर्थ होगा कि "अाज घड़े की 'नाश' क्रिया उत्पन्न होगी, जिसका वर्तमान काल में 'प्रागभाव' है, उसका श्राश्रय-भूत घट" । इसलिये कल नष्ट होने वाले घड़े के लिये 'श्वः नक्ष्यति' प्रयोग ही हो सकता है। अतः केवल 'वर्तमान प्रागभाव- प्रतियोगिता' को 'लृट्' प्रत्यय का अर्थ नहीं मानना चाहिये, अपितु 'वर्तमान प्रागभाव - प्रतियोग्युत्पत्तिकत्व' को 'लूट' का अर्थ मानना चाहिये, अर्थात् नाशोत्पत्ति के श्राश्रय-भूत काल का तथा जिसका नाश होना है उस आधार का - दोनों का बोध 'लृट्' प्रत्यय के द्वारा होता है । For Private and Personal Use Only 'वर्तमान- प्रागभाव प्रतियोग्युत्पत्तिकत्वम्' का विग्रह किया जाता है - 'वर्तमानकालिको यः प्रागभावः तत्प्रतियोगिनी उत्पत्तिर्यस्मिन् काले स वर्तमान प्रागभाव
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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