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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लकारार्थ-निर्णय २७६ ___ 'घटो नश्यति' (घड़ा फूटता है) इत्यादि (प्रयोगों) में ('नाश'की) 'वर्तमानकलीन उत्पत्ति' तथा 'प्रतियोगिता' 'लट्' के (ये दो) अर्थ हैं । प्रथम (वर्तमानोत्पत्तिकता रूप अर्थ) 'नाश' का विशेषरण है तथा दूसरा ('प्रतियोगिता' रूप अर्थ) 'घट' का विशेषरण है क्योंकि ('घटो नश्यति' कहने पर) वर्तमानकालीन उत्पत्ति वाले नाश का प्रतियोगी घट' इस प्रकार के अर्थ का अनुभव होता है। यहां ('अभिधा' तथा 'लक्षणा' इन) दोनों 'वृत्तियों का एक साथ अर्थ-बोधकता हैं यह सब को मानना चाहिये क्योंकि ('घटो नश्यति' जैसे प्रयोगों में) वैसी (वर्तमानकालीन) उत्पत्ति तथा प्रतियोगिता (इन दोनों) अर्थों का एक साथ बोध होता है। यदि कहो (लट्' का केवल) वैसी (वर्तमान कालीन नाश-) उत्पत्ति ही अर्थ मान लिया जाय तो क्यो हानि है ? ऐसा नही हो सकता क्योंकि ('नश्') धातु के अर्थ (नाश) का घट रूप प्रातिपदिकार्थ में साक्षाद् अन्वय असम्भव है। और केवल प्रतियोगिता' अर्थ ही ('लट्' का) है यह भी नहीं माना जा सकता क्योंकि (तब तो) बहुत पहले फूटे घड़े के लिये भी 'नश्यति' प्रयोगों होने लगेगा। इस (कथन) से "वर्तमानता ही ('लट' का) अर्थ है, उत्पत्ति अर्थ नहीं है' इस बात का भी खण्डन हो गया। 'नश्यति' (नष्ट होता है) जैसे प्रयोगों में नैयायिक 'लट्' के दो अर्थ मानता है। एक अर्थ है ... 'वर्तमानकालीन (नाश-) उत्पत्ति' तथा दूसरा अर्थ है 'प्रतियोगिता' (विशेषण बनाना) । ऐसा मानने का कारण यह है कि जब 'घटो नश्यति' कहा जाता है तो वहां “वर्तमानकालीन जो उत्पत्ति' उससे विशिष्ट 'नाश' का 'प्रतियोगी' घट" इसी अर्थ का बोध होता है । वर्तमानकालीन उत्पत्ति' रूप अर्थ तो 'नाश' इस धात्वर्थ का विशेषण है। दूसरा अर्थ 'प्रतियोगिता' घट का विशेषण है, अर्थात् ऐसा घट जो नाश का प्रतियोगी है, जिसका नाश हो रहा है। इन दोनों अर्थों में प्रथम---'वर्तमानकालीन उत्पत्ति'रूप-अर्थ को नैयायिक 'लट्' का वाच्य अर्थ मानते हैं तथा 'प्रतियोगिता'रूप अर्थ को 'लट्' का लक्ष्य अर्थ मानते हैं। ऐसे अनेक प्रयोग है जहां 'अभिधा' तथा 'लक्षणा' दोनों वृत्तियाँ साथ-साथ अपने अर्थों को प्रस्तुत करती हैं । अतः मुख्यार्थ की बाधा के बाद लक्षणा उपस्थित हो यह आवश्यक नहीं है। न च तदिशोत्पत्तिकत्वमेव प्रसंगात् - इन दोनों अर्थों को मानने की आवश्यकता इसलिये है कि यदि 'लट्' का केवल प्रथम अर्थ - 'वर्तमानकालीन उत्पत्ति'-- ही माना जाय तो धात्वर्थ 'नाश' का प्रातिपदिकार्थ 'घट' में सीधे अन्वय नहीं हो सकता क्योंकि "नामार्थ तथा धात्वर्थ का भेद सम्बन्ध से साक्षाद् अन्वय नहीं होता (नामार्थधात्वर्थयोर्भेदसम्बन्धेन साक्षाद् अन्वयोऽव्युत्पन्नः) यह परिभाषा है । इसलिये भेदसम्बन्ध से दोनों का अन्वय करने के लिये यह आवश्यक है कि 'घट-प्रतियोगिक' (घट का) इस अर्थ का भी ज्ञान हो । इसी तरह केवल 'प्रतियोगिता' अर्थ को मानने पर यह कठिनाई उपस्थित होती है कि बहुत पहिले फूटे घड़े के लिये भी 'घटो नश्यति' प्रयोग होने लगेगा क्योंकि वहां For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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