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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लकारार्थ-निर्णय २७५ ['लट' से किस प्रकार 'वर्तमान' काल तथा 'ग्राश्रयता' दोनों का बोध होता है और 'वर्तमान काल' का क्या अभिप्राय है इन प्रश्नों का उत्तर] तत्र लटा शक्त्या वर्तमानत्वं लक्षणया पाश्रयत्व बोध्यते इति विशेषः । लटा स्वाधिकरणकालोपाधिस्पन्द एव वर्तमानः प्रत्याय्यते । वर्तमानसामीप्ये विहितेन तु स्वानधिकरण-समीपवर्ती तादृशकालः । तत्रापि शक्तिलक्षणा वा इत्यन्यद् एतत् । वहां 'लट' के द्वारा 'शक्ति' (अभिधा) से वर्तमान काल तथा लक्षणा' के द्वारा 'पाश्रयता' का बोध होता है यह विशेषता है । अपना ('लट्' लकार के उच्चारण का) आधार भूत काल है विशेषण जिस में ऐसी क्रिया रूप 'वर्तमानता' ही 'लट्' लकार के द्वारा ज्ञात होती है। वर्तमान के सामीप्य में विहित ('लट्' लकार) के द्वारा तो अपने उच्चारण का जो आधार नहीं है ऐसे ('भूत' अथवा 'भविष्यत्' काल के समीपवर्ती 'वर्तमान' (काल) की प्रतीति होती है। यहां भी 'लट्' में 'अभिधा' तथ। 'लक्षणा' वृत्ति मानी जाये-- यह दूसरी बात है। लटा विशेषः- 'जानाति' जैसे स्थलों में, जहां 'वर्तमान' काल तथा 'कृति' के आश्रय दोनों का बोध होता है, नैयायिक 'लट्' के दो अर्थ मानते हैं - एक अभिधेय तथा दूसरा लक्ष्य । वर्तमानता' रूप अर्थ अभिधेय है तथा 'पाश्रयता' रूप अर्थ लक्ष्य है। यह नहीं कहा जा सकता कि शक्यार्थ के बाधित हो जाने पर ही लक्षणा वृत्ति उपस्थित होती है, इसलिये ये दोनों अभिधेय तथा लक्ष्य अर्थ एक साथ कैसे उपस्थित होंगे क्योंकि 'गङ्गायां मीनघोषौ स्तः' (गङ्गा में मछली और घोष हैं) जैसे प्रयोगों में एक साथ ही जल-प्रवाह रूप वाच्यार्थ तथा तट रूप लक्ष्यार्थं दोनों का बोध देखा जाता है। स्वाधिकरणकालोपाधिस्पन्दः ... 'लट्' लकार जिस 'वर्तमान' काल का बोध कराता है उसकी परिभाषा करते हुए यह कहा गया कि 'लट' लकार का जिस आधार भूत काल में उच्चारण किया गया वह 'स्वाधिकरण' काल ही जिस क्रिया ('स्पन्द',) की उपाधि अर्थात् बिशेषण, है उस तत्काल-विशिष्ट क्रिया को ही यहां 'वर्तमान' माना गया है। वर्तमान-सामीप्ये विहितेन...तदृशकाल:--परन्तु “वर्तमान-सामीप्ये वर्तमानवद् वा” (पा० ३.३.१३१) इस सूत्र से जिस 'लट् लकार का विधान किया गया उससे 'वर्तमान' काल के समीपवर्ती 'भूत' तथा 'भविष्यत्' काल में होने वाली क्रिया का बोध होता है। इसलिये उस 'लट्' लकार के विषय में 'स्वाधिकरणकालोपाधिस्पन्दः' की बात नहीं सङ्गत हो पाती। वहां वक्ता जिस समय 'लट्' लकार का उच्चारण कर रहा होता है या तो उस से पहले ही क्रिया हो चुकी होती है अथवा उस काल के बाद क्रिया होने वाली होती है। जब 'कदा आगतो भवाम् ?' (आप कब आये ?) इस प्रश्न के उत्तर में 'एष प्रागच्छामि' (अभी पाता हूँ) कहा जाता है तो वहां 'पाना' क्रिया For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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