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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६० वैयाकरण - सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा इस 'प्रवर्तना' को ही मीमांसकों ने 'शाब्दी भावना' कहा है तथा इसकी परिभाषा यह की है कि "पुरुष की कार्य में प्रवृत्ति हो इसलिये भावयिता या प्रेरक का प्रेरणारूप व्यापार विशेष 'शाब्दी भावना" है । द्र० - " तत्र पुरुष - प्रवृत्त्यनुकूलो भावकव्यापारविशेषः शाब्दी भावना" ( मीमांसान्यायप्रकाश, पृ० ५) । यह 'शाब्दी भावना' प्राख्यात के 'लिङ्' अश का वाच्यार्थ है क्योंकि 'लिङ' लकार के प्रयोगों को सुनने पर उनसे यह प्रतीत होता है कि यह कहने वाला मुझे इस कार्य को करने के लिये प्रेरित कर रहा है । यह विशिष्ट 'व्यापार' अथवा ' शाब्दी भावना' या प्रवर्तना' लौकिक वाक्यों में वक्ता पुरुष में विद्यमान अभिप्राय विशेष है । परन्तु वैदिक वाक्यों में 'लिङ्' प्रादि शब्दों में ही रहता है क्योंकि वेद मीमांसकों की दृष्टि में अपौरुषेय हैं, उनका कोई कर्त्ता या वक्ता नहीं है । इसीकारण इसे 'शाब्दी भावना' कहा जाता है । द्र० - " प्रतश्च शब्दनिष्ठ एव पर्याय व्यापारः शाब्दी भावना | सैव च प्रवर्तनात्वेन रूपेण विध्यर्थः " ( मीमांसान्यायप्रकाश, पृ० २६६ तथा अर्थसंग्रह ६) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ 'लुङ्' लकार के 'प्रादेश' भूत 'तिङ्' का अर्थ तथा 'भूतत्व' को परिभाषा ] लुङादेशस्य तु भूतसामान्यम् ग्रर्थः । भूतत्वं च वर्तमानध्वंस प्रतियोगि-क्रियोपलक्षितत्वम् । 'लुङ्' लकार के 'आदेश' ('तिब्' आदि) का अर्थ सामान्य 'भूत' काल है । 'भूतत्व' ( का अभिप्राय ) है ( अतीत में हुई क्रिया का) वर्तमानकालीन जो ध्वंस उसके 'प्रतियोगी' (अतीतकालीन क्रिया) से उपलक्षित होना । भूतत्वं च वर्तमानध्वंसप्रतियोगिक्रियोपलक्षितत्वम् - यहाँ 'वर्तमानध्वंस' पद के 'वर्तमाने ध्वंसः ' अथवा 'वर्तमानो ध्वंस:' इस रूप में विग्रह किया जा सकता है । दोनों ही विग्रहों में 'वर्तमानकालिक ध्वंस' अभिप्राय ही प्रकट होता है । यह वर्तमानकालिक ध्वंस 'प्रतीत' काल में होने वाली क्रिया का ही हो सकता है । इस तरह अतीत काल में की गयी क्रिया का वर्तमान काल में होने वाला ध्वंस ही यहाँ 'वर्तमान-ध्वंस' पद का अभिप्राय है । इस ध्वंस का 'प्रतियोगी' क्रिया, अर्थात् जिस क्रिया का यह ध्वंस है, जिस काल में अविनष्ट या ध्वंसरहित थी वह काल ही 'भूत' काल है । [ 'लुङ्' लकार के 'प्रदेश' - भूत 'तिङ्' का अर्थ ] लुङादेशस्य तु क्रियातिपत्तौ गम्यमानायां हेतुहेतुमद्भावे च गम्यमाने भूतत्वं भविष्यत्त्वं चार्थः । प्रापादना तु गम्यमाना । भूते एधश्चेद् अलप्स्यत श्रोदनम् For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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