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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दश-लकारादेशार्थ-निर्णय २५३ अर्थ हुआ 'अनद्यतन भविष्यत्' काल में होने वाली 'क्रिया' के वाचक धातु से 'लुट् लकार होता है"। भविष्यत्त्वं च उपलक्षितत्वम् :--- 'अनद्यतन' पद के अभिप्राय के विषय में ऊपर कहा जा चुका है। भविष्यत् काल की परिभाषा यहाँ यह दी गयी है कि वर्तमान काल में जिसका 'प्रागभाव' है उस 'क्रिया से उपलक्षित होने वाले, अर्थात् उसके आश्रयभूत, काल को 'भविष्यत्' काल कहते हैं । 'प्रतियोगी' स्वयं वह क्रिया ही है जिसका वर्तमान काल में 'प्रागभाव' है । जैसे-'धट: श्वो भविता' (घड़ा कल बनेगा)। यहाँ घट में होने वाली जो 'सत्ता' रूप क्रिया है वह दूसरे (आने वाले) दिन होगी, इसलिये आज उस सत्ता का 'प्रागभाव' है । यहाँ 'प्रागभाव' का 'प्रतियोगी' है 'सत्ता' क्रिया। यह 'सत्ता' क्रिया कल होगी। इसलिये इस क्रिया के द्वारा उपलक्षित -- इस क्रिया का प्राश्रयभूत-काल हुअा 'श्वः' (कल)। ['लुट्' स्थानीय ‘तिङ्' का अर्थ लुट्तिङस्तु भविष्यत्सामान्यम् अर्थः । 'लुट्' (लकार के 'प्रादेश'भूत) तिङ् का अर्थ सामान्य भविष्यत् काल है । 'लुट' लकार का विधायक सूत्र है-"लुट शेषे च” (पा०-३.३.३), जिसमें "भविष्यति गम्यादयः" (पा०३.३.३) से 'भविष्यति' पद की अनुवृत्ति पा रही है। "लुट् शेषे च” इस सूत्र से पूर्ववर्ती सूत्र “तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्” (पा० ३.३.१०) में 'क्रियार्थक क्रिया' का जो अर्थ-निर्देश किया गया उससे अन्य, अर्थात् 'क्रियार्थक क्रिया का अभाव' इस सत्र के 'शेष' पद से अभिप्रेत है। परन्तु यहाँ के 'च' पद से 'क्रियार्थक क्रिया' के होने पर भी 'लुट' होता है। जैसे-'शयिष्यते इति स्थीयते' (वह सोयेगा इस लिये रुका है)। अतः "लुट् शेषे च' का यह अर्थ किया जाता है कि "भविष्यत् काल' में होने वाली जो 'क्रिया' उसके वाचक धातु से, "क्रियार्थक क्रिया' के होने अथवा न होने पर दोनों स्थितियों में, 'लुट्' होता है" । ['लेट्' लकार के 'प्रादेश'भूत 'तिङ्' का अर्थ] लेतिङस्तु विध्यादिरर्थः, 'छन्दसि लिङ\ लेट्" (पा०३.४.७) इति सूत्रात् । लट् प्रक्रियातो 'लेटोऽडाटौ" इति विशेषः । 'भवति', 'भवाति' इति प्रयोगदर्शनात् । 'लेट' (लकार के 'प्रादेश') तिङ्' के तो 'विधि' आदि अर्थ हैं क्योंकि इस ('लकार') का विधायक सूत्र है-"लिङर्थे लेट्"। 'लट्' (लकार) की प्रक्रिया १. काप्रशु०-लेट क्रियातो। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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