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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा (कमल होता है) यह भी ज्ञान होता है । इस रूप में यहाँ 'अत्यन्तायोग' का व्यवच्छेद (अभाव) है। यहाँ 'विशेष्य-संगत', 'विशेषण-संगत' तथा 'क्रिया-संगत' में 'विशेष्य' 'विशेषण' तथा 'क्रिया' शब्द क्रमशः विशेष्यवाचकपद' 'विशेषणवाचकपद तथा 'क्रियावाचकपदों' के लिये व्यवहृत हुए हैं। ‘एव' के इस त्रिविध अर्थ-प्रकाशन की, स्थिति को किसी विद्वान् ने निम्न कारिका में संगृहीत किया है प्रयोगम् अन्ययोगं चात्यन्तायोगमेव च । व्यवच्छिनत्ति धर्मस्य एवकारस्त्रिधामतः ।। नागेश की उपर्युक्त पंक्तियों में 'धर्म' शब्द नहीं कहा गया पर उसे वहां अध्याहृत समझना चाहिये। इस तरह जब ‘एव' विशेष्य वाचक पद से अन्वित हो तो विशेष्य भूत व्यक्ति या वस्तु से अन्य व्यक्ति या वस्तु में निर्दिष्ट 'धर्म' का निषेध या अभाव ‘एव' का द्योत्य अर्थ होता है। जैसे-'पार्थ एव धनुर्धरः' प्रयोग से विशेष्यभूत पार्थ से इतर व्यक्ति में धनुर्धरता रूप 'धर्म के, अभाव की प्रतीति ‘एव' शब्द से होती है। इसी को 'अन्य-योग-व्यवच्छेद' कहा गया । जब विशेषण-वाचक पद के साथ 'एव' शब्द प्रयुक्त होता है तो 'एव' निपात, निर्दिष्ट 'धर्म' का विशेष्य के साथ जो सम्बन्धाभाव उसका निषेध करते हुए, विशेष्य के साथ उस 'धर्म' का नियमन करता है। जैसे - 'शंख: पाण्डुर एव' इस प्रयोग में 'एव' पाण्डुरत्व या श्वेतता रूप 'धर्म' का शङ्ख के साथ सम्भाव्य सम्बन्धाभाव का निषेध करता है । अतः यहाँ 'धर्म' के 'अयोग' (सम्बन्धाभाव) का अभाव 'एव' का द्योत्य अर्थ हुआ। इस रूप में 'प्रयोग' तथा 'व्यवच्छेद' इन दोनों निषेधात्मक शब्दों के कथित होने के कारण दो 'नञ्' यहां उपस्थित होते हैं और ये दो निषेध, विशेष दृढ़ता के साथ, यह बताते हैं कि शंख सफेद ही होता है -कभी भी वह नील आदि वर्णवाला नहीं होता । इस स्थिति को 'अयोग-व्यवच्छेद' कहा गया है । जब क्रिया-वाचक पद के साथ 'एव' का सम्बन्ध होता है तब वहां निर्दिष्ट 'धर्म' के 'अत्यन्तायोग,' (अत्यधिक सम्बन्ध के प्रभाव), के निषेध मात्र की प्रतीति 'एव' से होती है। जैसे-'नीलं सरोजं भवत्येव' यहाँ कमल के साथ नीलता का जो सम्भाव्य 'अत्यन्ताभाव' उसी का 'एव' निषेध करता है। इसका अभिप्रायः यह है कि किसी-किसी कमल में नीलता भी रह सकती है-यह आवश्यक नहीं कि केवल नीलता ही कमल में रहे श्वेतता भी कमल में रहती है, अर्थात् - कमल नीला भी हो सकता है तथा सफेद भी। इस तरह 'अवधारण' के प्रथम प्रकार के समान यहां न तो यही नियम किया जाता है कि 'कमल ही नीला है' और न, अवधारण के दूसरे प्रकार के समान, 'नीला ही कमल है' यह नियम ही यहां बनता है । अवधारण की इस तीसरी स्थिति को 'अत्यन्ता-योग-व्यवच्छेद' नाम दिया गया है । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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