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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा इन दोनों ही स्थलों में समास न होने का कारण यह है कि समास का विधान, "विभाषा" (पा ० २.१.११) का अधिकार होने के कारण, विकल्प से किया गया है। अर्थात् समास का करना न करना वक्ता की इच्छा पर निर्भर करता है । ['प्रसज्यप्रतिषेध' का स्वरूप]] प्रसज्यप्रतिषेधस्तु समस्तोऽसमस्तश्चेति द्विविधः । तत्र विशेष्यतया क्रियान्वयनियमात् सुबन्तेन असामर्थेऽपि "असूर्यललाटयोः०" (पा० ३.२.३६) इत्यादिज्ञापकात् समासः । तदुक्तम्"प्रसज्यप्रतिषेधोऽयं क्रियया सह यत्र न ।” अत्र 'क्रिया'-पदं गुणस्याप्युपलक्षणम् इति बहवः । अत एव' "न" (पा० २.२.६) सूत्रे भाष्ये "प्रसज्यायं क्रियागुणौ ततः पश्चान् निवृत्ति कुरुते' इत्युक्तम् । उदाहरणम्----'न अस्माकम् एकं प्रियम्' इति । एक-प्रियप्रतिषेधे बहुप्रिय-प्रतीतिः । एवं 'न सन्देहः', नोपलब्धिः' इत्याद्य दाहरणं गुणस्य, सन्देहादोनां गुणत्वात् । क्रियोदाहरणं च-"अनचि च" (पा० ८.४.४७), 'गेहे घटो नास्ति' इत्यादि । 'प्रसज्यप्रतिषेध (नञ्)' तो समास-युक्त तथा समासरहित दो तरह का होता है। उनमें (समासयुक्त स्थलों में 'प्रसज्यप्रतिषेध वाले 'न' के) प्रधान रुप से क्रिया में अन्वित होने के नियम के कारण 'सुबन्त' (पद) के साथ ('एकार्थीभाव' रूप) 'सामर्थ्य' के न होने पर भी “असूर्यललाटयो शितपोः" (इस सूत्र से सिद्ध होने वाले ‘असूर्यम्पश्या राजदाराः') इत्यादि (प्रयोगरूप) ज्ञापक से समास हो जाता है। यह कहा गया है कि--"यह 'प्रसज्यप्रतिषेध' (वहां होता) है जहां 'न' क्रिया के साथ (सम्बद्ध या अन्वित) होता है"। यहां (कारिका का) 'क्रिया' पद 'गुण' का भी उपलक्षण है ऐसा अनेक प्राचार्य मानते हैं। इसीलिये 'नन्' सूत्र के भाष्य में (पतंजलि ने) यह कहा है कि १. वाचस्पत्यम् कोश में शाब्दिकों के नाम से यह कारिका उद्ध त है । ह० में "अत एव''इत्युक्तम्" अंश अनुपलब्ध है। ३. तुलना करो-महा० २.२.६, पृ० १७८; प्रसज्यायं क्रियागुणौ ततः पश्चान् निवृत्ति करोति । ह० में 'एवं न'गुणत्वात्" अंश अनुपलब्ध है। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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