SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निपातार्थ-निर्णय २१३ (धर्म) 'प्रवृत्ति-निमित्त' हैं। ('पर्यु दास नन्' आरोपविषयता का द्योतक है) इसलिये 'अब्राह्मणः' इत्यादि (प्रयोगों) में, आरोपित है ब्राह्मणत्व (धर्म) जिस में ऐसे, क्षत्रिय आदि का बोध होता है । (तथा) इसी कारण "नञ्-तत्पुरुष समास में उत्तरपद का अर्थ प्रधान होता है। यह प्रसिद्ध कथन सुसंगत होता है। और इसीलिये 'अतस्मै ब्राह्मणाय' (जो वस्तुतः ब्राह्मण नहीं है उस कल्पित ब्राह्मण के लिये), 'असः शिवः' (कल्पित वह शिव) इत्यादि प्रयोगों में सर्वनाम संज्ञा के कार्य ('स्मै' आदि) उपपन्न हो जाते हैं। अन्यथा (यदि पर्युदास 'नञ्' को 'पआरोपविषयता' का द्योतक न मान कर भिन्न अर्थ का वाचक माना जाय तो नार्थ के प्रधान हो जाने तथा 'तत्' पद के अर्थ के) गौण हो जाने के कारण (उसमें) सर्वनाम के कार्य नहीं होंगे। 'प्रवृत्ति-निमित्त' का आरोप सदृश में ही होता है इसलिये “पर्युदास (नञ्) सदृश का द्योतक है" यह प्रसिद्धि है। 'पर्यु दास' में निषेध (अर्थ) तो ('पयुदास ना' के द्योत्य) अर्थ के जानने के बाद (उस अर्थ के द्वारा) उपस्थित होता है (सीधे 'नञ्' शब्द से नहीं)। दूसरे में दूसरे के धर्म का आरोप करना 'पाहार्य' ज्ञान है । “बाधित ज्ञान की स्थिति में इच्छा से उत्पन्न (वह) ज्ञान ही आहार्य ज्ञान है"-ऐसा वृद्ध लोग कहते हैं । ('पर्यु दास नम्' के) सादृश्य आदि (अर्थ) तो प्रयोग की 'उपाधियाँ' (धर्म) हैं-(अर्थात्) 'पर्युदास' में तो (वे) अर्थ के (द्वारा प्रतीयमान) अर्थ हैं। उन सादृश्य आदि अर्थों को भर्तृहरि ने कहा है "उस (उत्तरपद के अर्थ) की सदृशता, उस का अभाव, उससे भिन्नता, उसको न्यूनता, उसकी निन्दनीयता तथा उसका विरोध ये छ 'न' के (द्योत्य अर्थ से व्यक्त) अर्थ हैं।" गदहे के लिये (प्रयुक्त) 'अनश्वोऽयम्' (यह घोड़ा नहीं है) इत्यादि (प्रयोगों) में उस (उत्तरपदार्थ) का 'सादृश्य' (अर्थ) है । 'अभाव' (के विषय में) 'प्रसज्य प्रतिषेध' (के प्रसङ्ग) में कहा जायगा। 'अमनुष्य प्राणिनम् प्रानय' (मानवेतर प्राणी को लायो) इत्यादि (प्रयोगों) में उस (उत्तरपदार्थ) से 'भिन्नता' (अर्थ) है। 'अनुदरा कन्या' (छोटे पेट वाली लड़की) यहां उस (उत्तरपदार्थ) की 'अल्पता' (अर्थ) है । (यहां) अर्थ (स्थूलता के निषेध) से उदर की 'अल्पता' की प्रतीति होती है। ब्राह्मण के लिये 'अब्राह्मणोऽयम्' (यह अब्राह्मण है) इस प्रयोग में उस (उत्तरपदार्थ) की 'हीनता' (अर्थ) है। 'असुरः' 'अधर्मः', इन प्रयोगों में (क्रमशः देवताओं तथा धर्म से) 'विरोध' अर्थ है । ___ 'नन्' यह निपात है। प्रयोग में 'न' के रूप में ही यह सर्वत्र दिखायी देता है । अर्थ की दृष्टि से 'नञ्' दो प्रकार का माना जाता है । यद्यपि सर्वत्र इस निपात से 'निषेध' अर्थ ही गम्य है परन्तु कहीं वह गौण रहता है तथा कहीं प्रधान । पहली For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy