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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मजूषा 'समुच्चय' को विशेषण) कैसे माना जा सकता है जब कि दोनों में, विभिन्न विभक्ति न होकर, समान विभक्तियाँ ही हैं। इस आशंका का उत्तर नागेश ने यहाँ यहां दिया है कि "नामार्थयोरभेदान्वयव्युत्पत्तिः" यह परिभाषा 'निपात' शब्दों से अतिरिक्त विषयों में उपस्थित हुआ करती है। इसलिये 'निपातों' की चर्चा करते हुए हमें इस नियम को भूल जाना चाहिये और 'घट' तथा 'समुच्चय' में विशेषण-विशेष्य सम्बन्ध और 'पट' तथा समुच्चय' में विशेष्य-विशेषण सम्बन्ध के रूप में भेदसम्बन्ध से अन्वय स्वीकार कर लेना चाहिये । वस्तुतः 'प्रातिपदिक' शब्द 'लिङ्ग' तथा 'संख्या' से युक्त होते हैं, परन्तु 'निपात' शब्द इस प्रकार के नहीं होते । इसलिये इनके 'प्रातिपदिक' न होने के कारण उपरिनिर्दिष्ट परिभाषा 'निपातों' के विषय में लागू नहीं होती। वैभूसा० (पृ० ३७७-७८) में इस बात का खण्डन किया गया है। इस रूप में 'निपातों' की वाचकता के मत में कौण्डभट्ट द्वारा दिखाये गये दोषों का नागेश ने अपनी उपर्युक्त युक्तियों से खण्डन तो कर दिया पर 'सकर्मकत्व' आदि के विषय में उपर्युक्त अव्यवस्था को देखते हुए 'निपातों' को द्योतक ही मानना चाहिये यह नागेशभट्ट का अभिप्राय है । [द्योतक होने पर भी निपात सार्थक हैं, अनर्थक नहीं] निपातानाम् अर्थवत्त्वम् अपि द्योत्यार्थम् आदायैव । शक्ति-लक्षणा-द्योतकतान्यतम' सम्बन्धेन बोधकत्वस्यैव अर्थवत्त्वात् । नञ्समासे 'उत्तरपदार्थ-प्राधान्यम्' द्योत्यार्थापेक्षया एव । द्योत्य अर्थ के आधार पर ही 'निपातों' की अर्थवत्ता है क्योंकि 'अभिधा', 'लक्षणा' तथा 'व्यंजना में से किसी एक सम्बन्ध से (अर्थ का) बोधक शब्द अर्थवान् होता है। नसमास मैं 'उत्तर पद' के अर्थ की प्रधानता ('न' निपात के) द्योत्य अर्थ की दृष्टि से ही है। निपातानाम्.. 'प्रादायैव :-'निपातों' को अर्थ का द्योतक मानने का यह अभिप्राथ कदापि नहीं है कि 'निपात' शब्द अर्थवान् नहीं हैं। द्योत्य अर्थ के आधार पर भी 'निपात' सार्थक माने जा सकते हैं क्योंकि शब्द को सार्थक मानने के लिये यह आवश्यक नहीं है वह अभिधा वृत्ति से ही अर्थ को प्रकट करे। 'अभिधा', 'लक्षणा' तथा 'व्यंजना' ('द्योतकता') इनमें किसी भी वृत्ति के द्वारा यदि शब्द अभीष्ट अर्थ को प्रकट करता है तो उस शब्द को अर्थवान् माना जायगा । इसलिये द्योतक होने पर भी 'निपात' शब्दों की सार्थकता समाप्त नहीं होती। १. ह०अन्यतर-1 For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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