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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ वैयाकरण-सिदान्त-परम-लघु-मंजूषा कारकान्तरान्वयायोग्यत्वम् । 'साध्यत्वं' च क्रियान्तराकांक्षानत्थापकतावच्छेदकं सत् कारकान्तरान्वययोग्यतावच्छेदकरूपवत्त्वम् । 'हिरुक्' प्राद्यव्ययानां साध्यत्वाभावेऽपि क्रियावाचकत्वव्यवहारस्तु कियामात्रविशेषणत्वात् । तत्र सिद्धत्वं 'पाकः' इत्यादी घआदिवाच्यम् । साध्यत्वं तु सर्वत्रैव धातुप्रतिपाद्यम् । ननु हरिं 'नमेच्चेत् सुखं यायात्' इत्यत्र 'क्रियाया" अपि क्रियान्तराकांक्षत्वेन सिद्धत्वम् अस्तीति चेन्न । 'चेत्'-शब्द समभिव्याहारेण अकांक्षोत्थापनाद्-इत्याहुः । यहां ('क्रिया' की साध्यता के प्रसङ्ग में) कुछ (विद्वान्) कहते हैं कि दूसरी क्रिया की आकांक्षा की उत्थापकता का अवच्छेदक (परिचायक) एवं ('साध्य' क्रिया की अपेक्षा) विलक्षण धर्म से युक्त होते हुए तथा कारक के रूप में क्रिया के साथ 'अन्वयी' होते हुए दूसरे कारकों के साथ अन्वित हो सकने की अयोग्यता 'सिद्धत्व' है । और दूसरी क्रिया की अकांक्षा की अनुत्थापकता का अवच्छेदक (बोधक) होते हुए अन्य कारकों के साथ अन्वय की योग्यता के परिचायक धर्म से युक्त होना 'साध्यता' है। 'हिरुक' (छोड़कर) आदि अव्ययों में 'साध्यता' के न रहने पर भी उनमें क्रिया की वाचकता का व्यवहार तो केवल उनके क्रिया-विशेषण होने के कारण होता है। इस प्रसङ्ग में 'पाकः' इत्यादि (प्रयोगों) में 'सिद्धत्व' 'ध' आदि प्रत्ययों का अर्थ है । 'साध्यता' तो सर्वत्र ही धातु के द्वारा (ही) कथित होती है। 'हरि नमेच्चेत् सुखं यायात्' (यदि विष्णु को प्रणाम करे तो सुख को प्राप्त हो) इस (प्रयोग) में (नमेत्) क्रिया में भी, दूसरी ('यायात्') क्रिया को आकांक्षा होने के कारण 'सिद्धता' है-यह कहा जाय तो उचित नही है क्योंकि 'चेत्' शब्द की समीपता के कारण (ही) यहां आकांक्षा का प्रादुर्भाव होता है (उसके अभाव में नहीं)। अत्र केचित-'क्रिया' के स्वरूप-विवेचन के इस प्रसङ्ग में नागेश ने भर्तृहरि की जिन दो कारिकाओं को ऊपर उद्ध त किया है उसमें से पहली में प्रयुक्त 'सिद्ध' तथा 'प्रसिद्ध' (साध्य) की अपनी परिभाषा देने से पूर्व लेखक ने सम्भवत: कौण्डभट्ट द्वारा प्रस्तुत परिभाषा का, यहां 'केचित्' कह कर, उल्लेख किया है । १. ह., वंमि० में क्रियाया:' पद अनुपलब्ध । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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