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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यंजना-निरूपण ऊपर 'लक्षणा' के प्रकरण में वैयाकरणों की दृष्टि से 'लक्षणा' वृत्ति का निराकरण किया जा चुका है, जिससे यह स्पष्ट है कि नागेश के मतानुसार वैयाकरणों को वह वृत्ति मान्य नहीं है । परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि 'लक्षणा' के समान 'व्यंजना' वृत्ति भी वैयाकरणों को अभीष्ट या स्वीकार्य नहीं है। यहां नागेश ने इस तथ्य का सहेतुक प्रतिपादन किया है कि व्याकरण के विद्वान् इस व्यंजना वृत्ति को निश्चित रूप से मानते हैं। निपातानां द्योतकत्वम्-भर्तृहरि ने वाक्यपदीय में निपातों की अर्थ-द्योतकता का सुस्पष्ट प्रतिपादन किया है । इस दृष्टि से निम्न कारिकायें द्रष्टव्य हैं : निपाता द्योतकाः केचित् पृथगाभिधायिनः । मागमा इव केऽपि स्युः सम्भूयार्थस्य वाचकाः ॥ (२.१९४) कुछ निपात अर्थों के द्योतक हैं तथा कुछ पृथक रूप से अर्थ के वाचक हैं । कुछ अन्य निपात, प्रागमों के समान, किसी पद के साथ मिलकर अर्थ के वाचक हैं या, दूसरे शब्दों में, अनर्थक हैं। उपरिष्टात् पुरस्ताद् वा द्योतकत्वं न भिहाते । तेषु प्रयुज्यमानेषु भिन्नार्थेष्वपि सर्वथा ।। (२.१६५) (विकल्प, समुच्चय आदि) भिन्न भिन्न अर्थों की अभिव्यक्ति के लिये पहले या बाद में (कहीं भी) प्रयुक्त होते हुए इन निपातों को द्योतकता नष्ट नहीं होती। इस प्रकार सभी वैयाकरण निपातों को सामान्यतया अथं का द्योतक या अभिव्यंजक मानते हैं । नैयायिक विद्वान् अवश्य निपातों को वाचक मानते हैं जिसकी चर्चा आगे की जायगी। स्फोटस्य व्यंग्यता-वैयाकरणों की दृष्टि में 'स्फोट' (सूक्ष्म शब्द तत्त्व) अर्थ का वाचक है तथा वह बुद्धि-गत है और नाद या प्राकृत ध्वनि के द्वारा अभिव्यक्त होता है । इस कारण वह 'स्फोट' व्यंग्य है। इस स्फोट-विषयक व्यंग्यता की चर्चा भर्तृहरि ने वाक्यपदीय, ब्रह्मकाण्ड, के अनेक स्थलों पर की है। इस प्रसंग में निम्न कारिका द्रष्टव्य है : ग्रहरण-ग्राह्ययोः सिद्धा योग्यता नियता यथा । व्यंग्य-व्यंजक-मावेन तथैव स्फोट-नादयोः ।। (१.६८) जिस प्रकार ‘ग्रहण' (प्रकाशक) तथा 'गाह्य' (प्रकाश्य) में निश्चित रूप से क्रमशः व्यंजक और व्यग्य की योग्यता विद्यमान है उसी प्रकार 'स्फोट' तथा 'नाद' (प्राकृत ध्वनि) में भी व्यंग्य-व्यंजक रूप से नियत योग्यता विद्यमान है-'स्फोट' में व्यंग्य बनने की योग्यता है तथा 'नाद' में व्यंजक बनने की योग्यता है । ___भर्तृहरि से पूर्वभावी प्राचार्य व्याडि ने भी अपने संग्रह नामक ग्रन्थ में प्राकृत ध्वनि को 'स्फोट' का अभिव्यंजक माना था । द्रष्टव्य -- वाक्यपदीय की स्वोपज्ञ टीका में उद्धृत-"शब्दस्य ग्रहणे हेतुः प्राकृतो ध्वनिरिष्यते'' (चारुदेव संस्करण, पृ० ७६)। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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