SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शक्ति-निरूपण ४५ पर जिस अपभ्रश शब्द का प्रयोग किया जाता है उस (अपभ्रश के प्रयोग) से साधु शब्द से व्यवहित कोई अर्थ कहा जाता है। तन्न....."निर्णयः-परन्तु इन विद्वानों का यह मत युक्तिसंगत नहीं कहा जा सकता। क्योंकि साधु शब्दों के स्मरण के बिना भी असाधु शब्दों से सीधे अर्थ-ज्ञान का अनुभव होता है । यदि साधु शब्दों के स्मरण द्वारा ही असाधु शब्दों से अर्थ का ज्ञान होता हो तो सर्वथा अशिक्षित व्यक्तियों को, जो असाधु शब्दों के पर्याय-भूत साधु शब्दों को नहीं जानते, कभी भी उन उन अभिप्रेत अर्थों का बोध नहीं होना चाहिये। परन्तु उन्हें सदा केवल प्रसाधु शब्दों से ही सीधे अर्थ का ज्ञान होता है । यह कहना भी युक्तियुक्त नहीं है कि अशिक्षितों को सीधे असाधु शब्दों से जो अर्थ-प्रतीति होती है वह असाधुशब्दों में वाचकता शक्ति का भ्रम हो जाने के कारण होती है । क्योंकि यदि भ्रम से अर्थ बोध हुआ करता तो कभी न कभी तो उस भ्रम का निवारण होना चाहिये । परन्तु अशिक्षितों को सदा ही उन उन असाधु शब्दों से उन्हीं उन्हीं अर्थों की प्रतीत होती है । इसलिये असाधुशब्दों के विषय में शक्तिभ्रम की बात भी न्याय्य नहीं है। ___ वस्तुतः असाधुशब्द अर्थ के वाचक नहीं हैं यह कहना सभी ग्रामीण अथवा अपभ्रंश भाषाओं के प्रयोग का अपलाप करना है। साधु तथा असाधु शब्दों का विभाजन ही केवल एक वर्ग विशेष की भाषा को दृष्टि में रख कर ही किया गया है । सत्य तो यह है मानव का कोई भी वर्ग जिस भी भाषा का प्रयोग करता है उस में वक्ता के अभिप्राय को प्रकाशित करने की क्षमता रहती ही है। इसीलिये असाधुशब्दों की वाचकता का प्रतिपादन करते हुए नागेश ने यह तर्क दिया कि सर्वथा अपठित स्त्री शूद्र आदि को जब किसी साधु शब्द का प्रयोग किये जाने पर, उसके अर्थ के विषय में सन्देह उपस्थित होता है, तो वे अशिक्षित श्रोता उस साधु शब्द के पर्यायभूत अपभ्रंश शब्द से अर्थ का निर्णय करते हैं। इसी युक्ति को दूसरे रूप में यों भी कहा जा सकता है कि जब कोई बालक या अशिक्षित व्यक्ति किसी साधु शब्द का अस्पष्ट उच्चारण करता है तथा उस अस्पष्ट उच्चारण को सुनकर किसी विद्वान् को अर्थ के विषय में सन्देह होता है । तब वह विद्वान् उस अस्पष्टोच्चारित साधुशब्द के पर्यायभूत असाधुशब्द के द्वारा अर्थ का निर्णय किया करता है। (ये दोनों ही अभिप्राय 'अत एव निर्णयः' इस अंश में संकेतित किये गये हैं तथा ऊपर दो प्रकार के अनुवादों से स्पष्ट किये गये हैं)। ___ इसीलिये भर्तृहरि के पूर्वोद्ध त कारिकाओं के प्रसङ्ग में ही इस बात को भी स्वीकार किया गया है कि प्रशिक्षित व्यक्तियों के समुदाय में असाधु शब्द, बिना साधु शब्दों के व्यवधान के ही, साक्षात् अर्थ के वाचक होते हैं । तथा साधु शब्द, इस अशिक्षित वर्ग में, साक्षात् अर्थ के वाचक न हो कर, असाधु शब्दों के स्मरण रूप व्यवधान द्वारा ही अर्थ को कह पाते हैं : पारम्पर्याद अपभ्रशा विगुणेष्वभिधातुषु । प्रसिद्धिम् प्रागता येषु तेषां साधुरवाचकः ॥ वाप० १.१५४ For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy