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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शक्ति-निरूपण [अथवा-(इस अंश का दूसरे रूप में इस तरह अनुवाद किया जा सकता है) इसीलिये स्त्री शूद्र तथा बालक आदि के द्वारा साधु शब्दों का (अस्पष्ट) उच्चारण किये जाने पर विद्वानों को) अर्थ-विषयक सन्देह के उपस्थित होने पर उन (अस्पष्टोच्चारित साधु शब्दों) के (पर्यायभूत) असाधु शब्दों के (स्मरण) द्वारा अर्थ का निर्णय होता है] अत एव (असाधु शब्दों के भी शक्तियुक्त होने का कारण) “ शब्दों तथा अपशब्दों के द्वारा समानरूप से अर्थ का ज्ञान होने पर (व्याकरण) शास्त्र द्वारा धर्मविषयक नियम किया जाता है" यह भाष्य (में पतंजलि) का कथन तथा "(साघु एवं असाधु शब्दों में) समानरूप से वाचकता के होने पर भी (साधु शब्दों का प्रयोग पुण्य का उत्पादक होता है तथा असाधु शब्द पाप का-इस प्रकार का) पुण्य तथा पाप का नियम शास्त्रकारों द्वारा बनाया गया है" यह भतृहरि की कारिका सुसंगत होती है। यत्तु ताकिकाः अर्थबोध...इत्याहुः-नैयायिकों का मत यह है कि केवल साधु शब्दों में ही अर्थाभिधान की शक्ति होती है । इसीलिये, उनकी दृष्टि में जब विद्वानों को किसी अशिक्षित व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त असाधु शब्द से अर्थ का ज्ञान होता है तब वहाँ अर्थ-ज्ञान की प्रक्रिया यह होती है कि पहले असाधु शब्दों के द्वारा साधु शब्दों का स्मरण होता है और उसके बाद उन स्मृत साधु शब्दों से अर्थ का ज्ञान होता है । इसी तरह अशिक्षित व्यक्तियों को असाधु शब्दों के श्रवण से जब अर्थ-ज्ञान होता है तो वहां, इन नैयायिकों का विचार यह है कि, उन असाधु शब्दों में वाचकता शक्ति के न होने पर भी, भ्रम के कारण शक्ति की प्रतीति होती है। इसी कारण अशिक्षितों को उन प्रसाधु शब्दों से अर्थ का ज्ञान होता है। नैयायिकों के समान ही मीमांसा दर्शन के आचार्यों तथा व्याख्याताओं को भी यही मत अभिमत प्रतीत होता है। इनका कहना है कि 'गौः' इस साधु शब्द के स्थान पर जब अशिक्षित व्यक्ति 'गावी' इस असाधु शब्द का प्रयोग करता है तो श्रोता को 'गावी' शब्द साधु-'गो'-शब्द की स्मृति कराता है । इस स्मृति का कारण है 'गो' तथा 'गावी' इन दोनों शब्दों की समानता। अचार्य शबर ने मीमांसा-दर्शन के भाष्य में अनेक स्थलों पर इस मत का प्रतिपादन किया है। मीमांसादर्शन १.३.३६ की व्याख्या में वे कहते हैं-सादृश्यात् साधुशब्देऽप्यवगते प्रत्ययोऽवकल्पते, अर्थात् सादृश्य के कारण (असाधु शब्दों से) साधु शब्द के स्मरण होने पर अर्थज्ञान उत्पन्न होता है। इसी प्रकार १.३.२८ की व्याख्या में, असाधु शब्दों का प्रयोग किस प्रकार चल पड़ता है इसका विवरण देते हुए, प्राचार्य शबर ने कहा है :गोशब्दम् उच्चारयितुकामेन केन चिद् अशक्त्या गावीत्युच्चारितम् । अपरेण ज्ञातं सास्नादिमान अस्य विवक्षितः । तदर्थं गौरित्युच्चारयितु-कामो गावीत्युच्चारयति । ततः शिक्षित्वा अपरेऽपि सास्नादिमति विवक्षिते गावीत्युच्चारयन्ति । तेन गाव्यादिभ्यः सास्नाविमान अवगम्यते । अनुरूपो हि गाव्याविः गोशब्दस्य । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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