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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा प्रकार 'पाद' तथा 'माष' आदि शब्द भी अनेक अर्थों के वाचक हैं। इसलिये अर्थ-भेद के कारण अनेकशब्दता तथा समान आकार के कारण एकशब्दता दोनों ही स्थितियां तथा व्यवहार विद्वानों में प्रचलित हैं। भर्तृहरि ने इन दोनों ही सिद्धान्तों को वाक्यपदीय की निम्न कारिकाओं में संगृहीत तथा समन्वित किया है : कार्यत्वे नित्यतायां वा केचिद् एकत्ववादिनः । कार्यत्वे नित्यतायां वा केचिन् नानात्ववादिनः ॥ १.७० भिन्नं दर्शनम् प्राश्रित्य व्यवहारोऽनुगम्यते । तत्र यन्मुख्यमेकेषां तत्रान्येषां विपर्ययः ॥११७४ अर्थात् कुछ लोग शब्द को अनित्य तथा कुछ उसे नित्य मानते हुए शब्दकत्ववाद को मानने वाले हैं। परन्तु दूसरे विद्वान्, जिन में कुछ शब्द को अनित्य तथा कुछ नित्य मानने वाले हैं, शब्दनानात्ववाद के अनुयायी हैं । इन दो विभिन्न सिद्धान्तों का आश्रयण करके उनके व्यवहार देखे जाते हैं। इन दोनों वादों में से एक वर्ग की दृष्टि में जो मत (शब्दकत्व या शब्दनानात्व) प्रमुख है वही दूसरे वर्ग की दृष्टि में गौण है। मानते दोनों ही वर्ग दोनों वादों को हैं पर एक वर्ग जिस वाद को प्रमुख मानता है दूसरा उसे गौण मानता है। ['साधु' तथा 'असाधु' दोनों प्रकार के शब्दों में 'शक्ति' को सत्ता का प्रतिपादन] सा च शक्तिः साधुष्विवापभ्रं शेषु अपि शक्तिग्राहक-शिरोमरोर्व्यवहारस्य तुल्यत्वात् । व्यवहारदर्शनेन च पूर्वजन्मानुभूतशक्तिस्मरणम् । अतएव बालानां तिरश्चां च अन्वय-बोधः । नहि तेषां तदैव तत्सम्भवः । वह (वाचकता) शक्ति जिस प्रकार साधु शब्दों में रहती है उसी प्रकार अपभ्रश (शब्दों) में भी रहती है, क्योंकि शक्ति के द्योतकों में प्रधानभूत (हेतु) 'व्यवहार' दोनों (साधु तथा अपभ्रंश शब्दों) में समान रूप से होता है। (इस) 'व्यवहार' (शब्दप्रयोग) के देखने से पूर्वजन्मों में अनुभूत (शब्द की) शक्ति का स्मरण हो जाता है। इसी लिये बालकों तथा पशुओं को (भी) अर्थ-बोध होता है। उन्हें तत्काल (प्रथम-व्यवहार के समय ही) शब्दशक्ति का ज्ञान होना सम्भव नहीं है। सा च...... तुल्यत्वात्- साधु तथा असाधु शब्दों या संस्कृत और अपभ्रंश दोनों प्रकार के शब्दों में अर्थप्रकाशन की 'शक्ति' समान रूप से विद्यमान रहती है, १. ह. में 'अन्वयं' पद अनुपलब्ध । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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