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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में चार रंगण हों तथा अन्तिम वर्ण पर ही विश्राम हो उसे स्रग्विणी बन्द कहते हैं। इस के स्वर चिह्न-(sISSISSISSIS) इस प्रकार हैं ॥४८॥ - प्रहरणालता गुरु-पर-तुरगोपरि-कृतविरमा, न-न-मन-सुगंणलघुगुरु-घरमा। प्रहरणकलिताऽकलि कृतिमुखरै-, रसिकरसकलोचितजयललिता ।४६। (प्रन्ययः) गुरु-पर-तुरगोपरिकृतविरमा न-न-म-न-सुगगलवुगुरुचरमा रसिक-रस-कलोचित-जयललिता कृतिमुखरैः प्रहरणकलिता अकलि ॥ (टीका) गुरु:= गुरुवर्गः पर:= भन्स्यो येषां त दशा ये तुरगा:- सप्त सप्त वर्णास्तदुपरि तेषां तेषामन्तेऽर्थात्सप्तमे सप्तमे वर्ण कृतो विरम:- विश्रामो यया ला नगण-गण-भगणनगण-रूपसुन्दग्गणः सह (सहाथे तृतीया) लघुवर्णो गुरुवर्णश्च क्रमेण चरमः= अन्त्यो यस्याः सा, रसिकानां सकलाया उ. चितो यो जयः- जयशब्दस्तेन ललिता काव्यमार्मिक नै दुःतेति यावत्, कृतिमुखी- पण्डितप्रवरैः पहरणकलिता' (१) 'पृथग्विनानानाभि' रित्यादिवत् ' सहेनाप्रधान ' इति न्यासेनैवसिद्ध युरूग्रहण सशब्दप्रयोगाऽभावेऽपि तदर्थसत्तामात्रेऽपि तृतीयेति बोधनार्थमत एक पद्वों यूनेतिनिदेशः साच्छते । स्पष्ट वेदं सयुक्त ' इति सूत्रे शब्देन्दु थेपरे॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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