SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१) (प्रति०) उदीयम्= उच्चारणीयम् । षट्कम् = षट् । अपिच=किञ्च । वसुभिः= अष्टाभिः । तुरङ्गैः= सप्तभिः । स्पष्टमवशिष्टम् ॥ . (भाषा) जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण एक मगण और दो यगण हों अत एव आदि के छः एवं दसवा और तेरहवा अक्षर लघु हों उसे मालिनी छन्द कहते हैं । इस के पाठवें और सातवें अक्षर पर विश्राम होता है । स्वर वर्णों के चिह्न यहां पर (MISSsISSISs) इस प्रकार हैं ॥ ३४ ॥ हरिणी दधति लघुना पूर्वे पश्च त्रयोदश-तत्परावपिच दशमान्त्योपान्त्यौ द्वौन्समाद्रसलाद्गुरौ। भवति विरतिःषड्भिस्तुयैहयैश्च यहा तदा,कविकुल-शिरोरत्नैः प्रत्नबुधैर्हरिणी स्मृता ।। (अन्वयः) यदा न्-स-मात् र-स-लात् गुरौ पूर्वे पञ्च त्रयोदश-तत्परौ अपि च द्वौ दशमान्त्योपान्त्यौ लघुता दधति, विरतिश्च षड्भिस्तुहथैर्भवति, तदा कविकुलशिरोरलैः प्रलैः बुधैः हरिणी स्मृता ।। (टोका) यदा नगण सगणाभ्यां परतो मगण-रगण-सगण लववस्ततः परे गुरौ सति प्रतिवरणमाद्याः पञ्च वर्णास्त्रयोदशश्वतुर्दशस्तथैकादशः षोड़शश्च लघुतां दधति- लघवो भवन्ति, आद्यात्षड्भिस्ततश्चतुर्भिस्ततः सप्तभिश्च , वर्णविरामो .. भवति, For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy