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________________ - - APOOR R इति संपूर्णम् ॥ ॥ मंगलीकर्थे जिनस्तवना ॥ त्रोटकबंद ॥ प्रभुरूप करीजगध्वांतशरी पदचारतपादिकजुक्तचरी रिदे धरी प्रभुध्यानप्रमाणसही तिमकीर्तिसुसूढविसाल कही ॥१॥ जगतारणनांबवडोजगमें सिढस्वेत दिसेंशिवमंदिरमें धरलंकरदोरसम्यगभलो चढजा यसुखेंनिरखोविरलो ॥२॥ धनसोनरजोमनध्यान धरें जिननामनहीनिसदिनहरे अरहंतभगवंतभजैदि लमे वडभागभयेनरसोजगमे ॥ ३ ॥ लघुताहरता प्रभुताकरता दुरितावरतानजतातरता जिनदासक हेभजलेनविशा गुरुगौतमजीउपदेसदिया ? इति॥ नेमनाथमोरीअरजसुणीजे एदेशी ॥ पार्श्वनाथनी प्रागपुरेजिन दिनरतेजसवाये वंदनपूजनकरतउ मायो अष्टकर्मजिणेजीत्याहै ॥ पा० ॥ १ ॥ वज़ पडहसमज्ञानावरणी दायेकरनंतउपायाहै पालि आवतदर्शणावरणी मोहकाकजणेजीत्याहै पा०२॥ भंडारीसमअंतरायजीतके अनतविर्यबलपायाहै अ गमअगोचररीतीयाकी सुरनरमुनिवरध्यायाहैपा० ॥ ३ ॥ दोयत्यागऔरदोयध्याइये चारमंदोयेचि तलायाहै दोयमेंस्वसरूपिकहाये अविचलपदनिप जायाह पा०॥४॥ तीनतीनौतीनरत्यागके तीन ने चितलायाहै तीनध्यायकतीनउपार्ज तवतीनंकय पायाहै पा० ॥ ५ ॥ चारोसंगेचारजीतक चारास निपटायाहै पांचत्यागऔरपांचहराये पंचसेपंचमी
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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