SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २१८ ) - टूटताहै ? तब जोतिषीके पूछने से मालूम हुशा कि इसफाटकके देवताको नरबलि देनाचहिये तब नटूटेगा, राजा सुनके बोला यदि मनुष्यके वधसे फा ठक स्थिररहे तो हमको फाटकसे वा नगरसे क्या कामहै जहां हमरहेंगे वहीं नगर होजायगा, तब मंत्रीने नगरके लोगोंसे कहा फाटक मनुष्यका वध किये विना नही बनता, राजातो मनुष्य वधमे अनुमत नहीहै, अब तुमलोग सबमिलके यहकार्य करो, तब नगरवासी लोगोने राजासे कहा शाप कुबमतकरिये हमलोग मनुष्यवधकरके फाटक बना यलेंगे, राजा कुबनी नबोला, तब नगरवासी लो गोंने हापुस्मे धन एकठा करके एक सोनेका पुरुष बनाया उसके आगे करोफरुपैया छक पर रखके नगरमे मुगगी पिटवाय दिया कि जोकोई ए कमनुष्य बलिदेनेके वास्ते देगा उस्कों उस्के बद लमे यह करोफरुपैया सहित सोनेका पुरुषदिया जायगा, तब एकदरिद्री ब्राह्मण अपना बेटा देने को तयार हुआ उस्कों बहुत बेटेथे, तब नगर वा सियोंने वहदेके उस ब्राह्मणके लझकेकोलेके वस्त्र अलंकारसे भूषित करके राजाके सामने लेनाए राजाने उसलाकेकों प्रसन्न मुख देखके पूछा हेबा लक! यह खेदका समयहै तूं प्रसन्न क्यों है, बह बोला महाराज ! कोई पितासे दुःखित होताहै तो माताके शरण जाताहै, मातासे दुःखित होताहै - -
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy