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________________ ( २१५ ). णने लगा उसश्रुतमे उद्वेगजनक सूत्रहैं उनके प्र नावसे उसनगरको शागलगने लगी, चोरडांकू ल टनेलगे लोग दुःखित होय घर बोझ नागनेलगे, नगर सब शन्य होनेलगा, तब लोगोंको गिरते प फते रोते पीटते दुःखित होते देखके साधुविचार ने लगा कि हा!!! हमने यह क्या किया, निष्कारण इनको दुःखमे डाला. सर्वज्ञका वचन कदापि ऊठा नहीं होता' जो नगवानने कहा वही हुआ. ऐसा सोंचकरते करुणाधीन होय फिर समुत्थान श्रुतका गुणन करने लगा, उस श्रुतमे आल्हादक सूत्रहै, उनके प्रभावसे नगरका शग्निशांत होगया नग रवासी प्रसन्नहोय पहिले ऐसे आयके वसने लगे राजानी स्वस्थ हुआ भयदूर होगया, तब मुनि उपशमपाय नगवान्के पास प्रायके अभिग्रह लि याकि जबतक केवलज्ञान नहोगा तबतक शाहार नकरेंगे, अनंतर अपने प्रमादकी निंदाकर्ता हुवा शुभ अध्यवसायसे सातवेदिन केवलज्ञान हुआ, देवोंने महिमाकिया, फिर दमसारमुनि अनेक ज नोंको प्रतिबोध देतेहुए वारहवर्ष केवलपर्याय पालके अंतमे संलेखना करके सिछ होगए ॥ सं वेग ३ उत्कृष्टदेव सुख और नरसुखका त्यागकर के केवल मुक्ति सुखानिलाष ॥ निर्वद ३ नारक तिर्यगादि संसारिक दुःखोंसे मनकाहटना अर्थात् नवसे विराण होना। यहदोनो संवेग और निवेद
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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