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________________ उपार्जन किया, दोनो इस प्रकार नक्तिसे सम्यक्त भूषितकरके शंतमे समाधिपरिणामसे देवलोकके अनेक सुखपायके ऋषनदेवस्वामीके पुत्रपणे उ त्पन्लजए, बाऊ भरतनामक होके चक्रवती ऊए सुबाऊ बाऊबलीनामक चक्रवतीसे नी अधिक बलवान् ऊए, तब वह विविधसुख नोगपूर्वक चा रित्रशाराधके मुक्त होगए इनपांचोसे सम्यक्त न षित होताहै ॥ उपशम १ महापराधीके ऊपरनी क्रोधकासर्वथानहोना, यह किसीकोक्रोधकेबुरेफल देखके होताहै, किसीको स्वन्नावहीसे होताहै यह सम्यक्तको लक्षित करताहै। जैसे दमसारमुनि, नरत क्षेत्रमे कृतांगलानाम नगरीथी, उस्मे सिंहरथ रा जाथा उसका पुत्र दमसार बहुतचतुरथा, एकदा श्रीमहावीरस्वामी शाए तब राजासिंहरथ दमसा रको साथलेके नगवान् के वंदनार्थशाए, नगवान् का कहा धर्म सुनके दमसारको रुचि उत्पन्नहुई तब घह उठके भगवान्को वंदनाकरके बोला हेस्वामि न्! आपका कथित सर्वविरतिरूप धर्म हमको बहुत रुचताहै इससे हम आपकेपास प्रव्रज्या लें गे तब भगवान् बोले यथासुख प्रतिबंधमतकरो तब कुमार दमसार घरपर आयके मातापिताकी इच्छानरहतेभी शाग्रहसे आज्ञालेके नगवानसे दी दालेके मासक्षपणका शनिग्रह लिया, और मास दपणादि तपस्यासे शरीर कृश करडाला, उसस
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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