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________________ ( २०२ ) -- विलास यादहोनेलगा, मनस्थिर होनेकेअर्थ बहुत उपायकिये परंतु स्थिरनहुआ, एकदिन आहारके वास्ते धोखेसे वैश्याके घरमेगए, जोतुके श्रद्धाहै तोमुके निदादे तुझे धर्मलान होय, वेश्याबोली इहां धर्मलाभसे सिछि नही अर्थलानसे सिठिहै, लब्धियुक्त साधुने तथास्तु कहके साढेबारह करोड असफी बरसायदिया, ऐसा महानिशीथमे कहा, ऋषिमंडल टीकामेतो तृणकेबचनेसे वृष्टिहुई लि खा, परंतु दोनोंमे लब्धिहीकारणहै इससे सामान्य विशेषनावसे दोनोंकी एकवाक्यताहै विसंवाद न हीहै , अनंतरवेश्या चकितहो शीघ्रउठके साधु को हावभाव देखाती हुई मनको चंचल करायके बोली, हे स्वामी आपने इन अशर्फियोसे मुके खरीदलिया, अब आप प्रसन्नहोके अपना धनभो गिये, इत्यादिअनेक वचनोंसे मुनिका मनचलग या, उसके वशहोके नोगकर्मोदयसे उसके साथ नोग करनेलगा, परंतु एक उसनेप्रतिज्ञा कियाकी प्रतिदिन दसपुरुषोंको धर्मोपदेशदेके भोजन क रूंगा, कदाचित् उनमे एककम होगातो हम ही दसवें होंगे, बारह वर्षतक दसकामी पुरुषोंकों प्र तिबोधदेके नोजनकरताथा, एकदिन नवकों प्रति बोधदिया दसवां एकसोनारको चारप्रकारके कथा ओंसे प्रतिबोधदिया परंतु प्रतिबोधनलगा, प्रत्युत वह इनको कहनेलगाकितुम शाप विषयकीचळमें
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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