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________________ ( १९७ ) बसताथा, वह एकदा हमारेमुखसे धर्मसुनके सम्य क्तपूर्वक श्राद्धधर्मपालने लगा, कुबदिनबाद कुती र्थियोके संसर्गसे सम्यक्तघटने अर मिथ्यावृष्ठित्व बढनेलगा, ऐसे मिश्रितपरिणामोंसे कालबितायते एकदा गमौकेदिनमे पोसासहित बेलेका ब्रतकिया, उसमे तीसरेदिन आधीरातकेसमय तृषासपीडित होके शर्तध्यान करताहुशं यह विचारनेलगाकी धन्यहैं वहलोग जो कंत्रा बापी तलाव बनावतेहैं, और धर्मोपदेशकोंनेभी यह धर्मउत्तम कहा, जोकोई इसधर्मकार्यको बुराकहतेहैं व्यर्थहै, क्योंकि गमीमे तृघ्नाकुल दुर्बलप्राणी उनबाउली आदियोंमे आ यके जल पीते हैं इसलिये हमनी कल एकबडी बा पी बनवावेगें जिससे सदापुण्य बनारहे इसप्रकार चिंतनकरता रातबितायके सबेरेउठ पारणकरके श्रेणिकराजासे आज्ञाले वैनार गिरिकपास एकबडी बापीबनवाया उसके चारोतरफ बगीचे और दा नशाला देवमंदिर बनवाये इसअवसरमे कुद्रष्टि योंके परिचयसे सर्वथा धर्मभ्रष्टहोगया उससे श रीरमे सोलह महारोग होगए उनकी पीठासे मरके उसीवापीमे मेकाहा वहां अपनी वापी देखनसे जातिस्मरण हुआ और धर्मकी विराध नाका फलजान विरक्तहोके नियमकिया कि प्रा जसेनित्य बेलाव्रतकरना पारणकेदिन वापीकेतट पर प्रासुक जल और मही मिलेगी नदणकरना -
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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