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________________ ( १८७ ). - | पदेशकोंकी निंदानकरें नहीतो अब दुबारा जैसा कुछ हमलिखेंगे उनको मालूम होजायगा ॥ ___ और आधुनिक साधुओंकी निंदालिखके ग्रंथ ग्राह्यहोय इसलिये सम्यक्तनिर्णय नामरखा सो असंगतहै यहनी लोगोंको अच्छीतरहसे ज्ञात हो नेकेलिये सम्यक्तनिर्णयन्नी लिखतेहैं ॥ ॥ ॥ अथ सम्यक्तोत्पत्तिः ॥ इस एनादि अनंत संसारमेशनादिकालसे कोई एक मिथ्याद्रष्टिजीव मिथ्यात्वप्रत्ययो अनंते पुजल परावर्ततक वारंवार जन्ममरण करतेकरते भ्रमण करताहै,कोईएक अचभकर्मके लघुतासे जैसे पहाडी नदीमे पूत्थर गुरुतेगुडते आपसेआप चिकना अर गोल होजाताहै, तैसे जीवन्नी परिणाम विशेषरूप यथाप्रवृत्ति नामकरणसे बहुतसे कर्मोको दीणक रताहुआ थोकर्मोको बांधताहुणा संज्ञिपनेको पायके शायुकर्मवर्जित सातकर्माको पल्योपमका असंख्यातभागन्यून एकसागरोपम कोटाकोटीकी स्थिति करताहै, इसश्वसरमे जीवके अलनकर्म से उत्पन्न अत्यंत रागद्वेषका परिणामरूप कठिन खुलनेनसके, टूटनेनसके, पहिलेकभी जीवने तोडी नही ऐसीग्रंथी होतीहै, इसग्रंथितक यथाप्रति नामकरणसे कर्मोकाक्यकरके अनंते अभव्यजीव नी पहुंचतेहैं, और इसग्रंथिदेशमे पहुंचा नव्यजीव वाअभव्यजीव संख्यातकाल वा असंख्यातकाल रह - - - - -
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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