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________________ ( १७७ ) मदनरेखा पूर्वजवकी धर्माचार्य हुई इस्से हमने इसको पहिले नमस्कार किया इत्यादि इससे सा मान्यस्त्री धर्मकार्य करावनेसे मुनियोंसेजी प्रथम बंदनीय हुई तो आधुनिक साधु आगमोक्त व्या ख्यान सहित यथार्थ धर्मोपदेश करनेवाले परमो पकारी क्यों नही बंदनीय होंगे ॥ ॥ और“गुरुर्द्धर्मेौपदेशकः । तथा । गुरुर्द्धर्मोपदेष्टै वश्रुतिर्धर्मात्मिकैबच । द्वयमप्यन्यथा कुर्वन्मि त्रमापापमर्जय ॥ १ ॥ "" इस योगशास्त्रके बचनसे आधुनिक धर्मोपदेष्टा यती लोगही गुरुहैं, इनका विनय करनेकी आज्ञा ओर उसका फल प्रश्नव्याकरण के संवरद्वारके छठवे अध्ययनमे लिखा है ॥ "विण ओबि तवो तवोविधम्मो तम्हा विण पउंजियो गुरुसुसाहूसु तवस्सीसुय एवं विणएण भावितो भवड़ अंतरप्पा णिचं,, टीका, अन्येष्वेवमादिकेषु बहुषु कारणा तेषु विनयः प्रयोक्तव्यः कस्मादेव मित्याह बि नयोपि नकेबल मनशनादि तपोऽपितु विन यो पिवर्तते याभ्यंतरतपोभेदेषु पठितत्वात्तस्य यद्यप्येवं ततः किमतग्राह तपोपिधर्मः नके वलं संयमोधर्मः तपोपिधर्मो वर्तते चारित्रां शत्वात्तस्य यत एवं तस्माद्विनयः प्रयोक्तव्यः केष्वित्याह गुरुषु साधुषु तपस्विषुच अष्टमा
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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