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________________ की योजना होती है ॥५८॥ जिनागममे निश्चय करके करने लायक है अथवा करने लायक नही है एसी व्यवस्था नही है क्यातो गुण भर दोष विचार करके करने लायक भर न करने कायक की व्यवस्था है॥५९॥शागमों को देखके, धर्माथी भर आगमके जाननेवाले पुरुषों को पूबके अर शिष्ट जनोकी प्रवृत्ति अर्थात् चलन देखके आगमो मेकी प्राचीन चलन सुनके छन्न बुध्विालोका मोह दूर होनेके लिये यह थोझासा हमने कहा सो पुण्य के इच्छावान् निपुण सजनोने विचार करके सुनना चहिये॥६०॥दानका अभाव होजाने से गृहस्थों का मुख्यधर्म नष्ट होजायगा अर दानके नदेने से साधुओं की स्थितिनी नहोगी उससे जैनमार्गका नाश होजायगा अर छ जो जिन भगवान् का मत है उस्की बड़ी निंदा होगी इसलिये जयमुनि ने यह युक्तियुक्त लिख दिया है ॥६१ ॥ इस जयमुनिकृत धर्मरत्नाकर ग्रंथके वचनों से स्पष्ट सिह होता है कि आधुनिक साधुओकों न वंदन करने से १ न शाहारादि देनेसे २ न गुरु बुद्धि करके माननेसे नरक गति होती है, अर नही देनेवाले मिथ्यादृष्टीनी होते हैं इसलिये विपरीत बुद्धि कदापि नहीं करना चाहिये ॥ और उत्तराध्ययन के ाठमे अध्ययनके मदन रेखाके दृष्टांतसे धर्मोपदेष्टा को चारित्री साधुओं
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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