SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - पादि करके शादमी का खर्च वा पुस्तक लेनी है कहके द्रव्य नही लेते हैं ? अथवा बहुमूल्य पूठा, ठवणी, वस्त्र, ऊबिया आदि नही लेते है? अथवा कितने एक महात्मा संवेगी साधु आदि द्रव्य संग्रह करके गुप्त वृत्तिसे श्रीमंतोके पास जमा नहीं करते हैं? तथा प्रसिछ है रूप विजय वीरविजय साधु कोठीवाल थे जिनकी हुंकी चलती थी, औरत्नी अनेक जस विजय पंथ प्रवर्तक महात्मा लोग न जाने कौनसे गण ठाणमे थे वाकी रजोहरण मुंह पत्ती दंझादिकका धारण करना तो सब में समा नही है, हां एक बातकी अवश्य तारीफ करना चाहिये कि जैसे आपसंवेगी लोग अपने सिहां तोक्त दंनक्रियामे चतुर और पंडित हैं, जती लोग केवल मूर्ख हैं, यदि यती लोगनी दनक्रिया मे निपुण होते तो मुग्धलोगोके नजदीक पंचमहा व्रतधारी वन जानेमे कुछ शक नही था ॥ और इस पंचमकालके साधुणोंको बंदना करने तथा आहारादि देने या गुरु बुछिकर माननेमे कि सी प्रकार पापफल नही होसकता है,प्रत्युत नवंदन करने १. न शाहारादि देने २ न गुरु बुद्धि करके मानने ३ से नरकादिनीच गतिके अधिकारी होते हैं, इस्मे प्रमाण धर्म रत्नाकर है। "साधवो जंगम तीर्थं जल्पज्ञानंचसाधवः । साधवोदेवतामूर्ताः साधुभ्यःसाधुनापरम् ॥१॥ -
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy