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________________ ( १५३ ) . ॥ तत्वविवेक ॥ साधु और गृहस्थ लोगों की वर्त्तमान काल में धर्म विषयकी व्यवस्था देखके मनमे हम अतिशय दुःखित थे उस्मेजी संवत् १९३० के सालमे किसी एक नाव विजय नामक द्रव्य संवेगी साधुने सम्यक्त निर्णय नाम ग्रंथ बनायके छपवाया उसमे उसने वर्तमान कालिक साधुओंकी निंदा लिखके भयिक लोगों का मन कलुषित अर्थात् शास्था भ्रष्ट कर दिया जिससे कितने एक जबिक लोग साधुयोंपर आस्था भ्रष्ट होके वंदना भी नही करते हैं देना तो कहां प्रत्युत निंदा करने को प्रवृत्त होते हैं इत्यादि अनेक दुःखके कारण हम यह तत्वविवेक लिखने में प्रवृत्त हुए । 1 अर भी इसके लिखनेका प्रयोजन है कि सम्यक्त किसको कहना, और मिथ्या दृष्टित्व किसको क हना, यह यथार्थ शास्त्र के प्रमाणसे प्रदर्शित होने से भविकों का भाव यथास्थित होगा उससे धर्म प्रवृत्ति भी बढेगी और साधुओंकी निंदा करनेवाले ने जिस जिस हेतुसे साधुओं को मिथ्या दृष्टित्व ठहराया है सो शास्त्र के अनुसार ठीक नही है यह सब लोगोंको अच्छी तरह से बिदित होनेके लिये उस सम्यक्तनिर्णयके मुख्य बातोंपर उत्तर लिखते हैं और उसके आगे सम्यक्त निर्णय भी लिखते हैं ॥ पहिले उसने संबोध सप्तरीका वचन लिख
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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