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________________ (. ११ ) । मारी धारणा प्रमाणे एशवेडे पजे ज्ञानी कहे ते प्रमाण । एम व्रतपचखाण लेणो नई। तारे प लसरीखा थया ब्रतपचखाण करवू जे तीर्थंकरोये कह्यों ने तेमां हेतु शने फलपण देखायोके जेश नादिकालथी जीवने ज्ञानावरणादि ८ कर्मथी बंध न थयोडे ते कर्मोना बंधन जाणीने विशिष्टक्रि यायें अर्थात् संयमानुष्ठानरूपक्रियायें ते बंधने श त्माथी जुदो करवो जेकाले संयमानुष्ठानथी जुदो थासे तारे मुक्त कहासे तेज व्रतपचखाणनूं फल के संयमानुष्ठानज ब्रतपचखाण व्रतपचखाणनक रिये तो मुक्त किम थायें॥अब्रती अपचखाणीनी नरके गतिकहीजे॥ तेजप्रकारे यतीनी प्रतिष्ठितजि नप्रतिमा वांदणी नई एपण केह→ युक्त नथी केमके यतीनेज प्रतिष्ठा करवानों शधिकारबे तेमंत्रसंस्का रादिक्रियामां श्रावकने अधिकारनथी उमास्वाति वाचक तेम पादलिप्ताचार्य कृतप्रतिष्टा कल्पोमांप्र गट लख्यो जे। सूरिःप्रतिष्ठां कुर्यात् । अर्थात् आ चार्य प्रतिष्ठाकरे प्राचार्यने शन्नावें बहुश्रुत यती ने पण प्रतिष्ठाकरवी कहीले पणि श्रावके पोतेंज प्रतिष्ठा करवी एहवो पाठ कोई ग्रंथोमां दीखतो नथी । तेम महावीरस्वामीनीज प्रतिमा वांदणी ए केहवो पणि अयुक्त जेचैत्यवंदनविधिमां तेम लो गस्स मां २४ तीर्थंकरनी प्रतिमा वांदणी कहीजे भूत नविष्यत् वर्तमान जईलोक अधोलोक तिर्य
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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