SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११३ ) - विखराई गयो सारे काजवें नदात्रमंझल अपूर्वदी ठो तेने देखावा कुटुंबने तेडवागयो तेटलामां पा छो पुराईगयो हवे एहवो बीजीबार योग कठिण तेम मानवनव मलवो कठिणके ॥८॥ ॥ __ नवमो दृष्टांत, कोईदेवतायें जूसरी समुद्रनापूर्व कांठेनांखीने समेल पश्चिम कांठेनाखीए पोते केम भेलीथाय तेम मानवनव गयो पाडो पामवो क ठणछे ॥ ९ ॥ दसमो दृष्टांत, कोई थांनाने भांजी अतिकीणो शाटो करी मेरू ऊपरचढी वायराजोगे तथा देव शक्ते उदारी नाखिये तेपाबो आटो भरोकरी थांभो हतो तेहवो बनावा चाहोतो बनवो कठिण तम मानवनव मलवो कठण ॥ १० ॥ अथ सातो निन्हवनी कथा संक्षेपे लखियेबे ॥ - पहिलो निन्हव, श्रीमहावीरस्वामीनी पुत्री प्रिय दर्शना तेनोपति जमालीनामे तेणे वैरागपामी दी कालीधी पडे (कयमाणक) एहवो वचनउथापी घणांजीवोने भरमाव्यो तेथीमरी किल्बिषियो दे यताथयो देवतामां चंकालनी जातिमां ऊपनो आ गे घणो भमसे ॥ १ ॥ ॥ ॥ बीजोनिन्हव, तिष्यगुप्ताचार्य शंत्य प्रवाद पर्व नणतां (एगेभंतेजीवे) एआलायो नणतां शंकाऊप नी जेसगला प्रदेशाजीबना एकठा मलेथी जीव क हिये एक प्रदेशऊणे होय तहासुधी जीव नकहि Ram
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy