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________________ - - - जिनने पूग्रो तेणें कहगो कृतनी लब्धं शाहार म ल्योबेतेाहार नहीकस्यो परठवता मोदकचूरता क र्म चूरी केवलपाम्या एमबीजा मुनिये परीसहसह वो ॥ १९ ॥ ॥ रोगपरीसह ऊपर कालमुनिनी कथा कहीबे, म थुरानो राजकमार काल इसेनामे दीक्षालीधी पडे शरीरमांरोग ऊपनोते मटाडवा शर्थ तेनी बने शा हारमा ओखदनाखी वोराव्यो मुनिये ओखदमिनि त शाहार जाण्यो काया असारजाणी न वावस्यो शणसण कीधो तेहवामां एकवेरी देवतायें सियाल न रूपकरी मुनिने खावालाग्यो तेवेदना तथा रो गनी वेदना कमा सहित खमी कालकरी देवता थयो ॥ २० ॥ - वस्त्रपरीसह ऊपर मद्रमुनिनी कथा, मथुरानो राजकुमार नद्रमुनि अनार्यदेशमा गया तिहां एक दुष्टे कपमा जाझीलीधा मुनिये कमाकरी शीत उच्न खमता केवल पाम्यो ॥ २१ ॥ ___ मलपरीसह ऊपरकथा, चंपानगरीनो सुनंदाना मे सेठ दानेसरी पण साधना मेला कपडा देखी टु गंबा करे तेथी कर्मबांध्यो तिहांथी मरी कोसंबीये एकसेठनो पुत्रथयो पणशरीरे महादुर्गंध थई धर्म पामी दीक्षालीधी तपस्याकरी दुगंछाकर्म खपाच्यो पण देवताएं शरीरसुगंधी करवा कहयो ते कबूल कस्यो नही ॥ - - - -
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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