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________________ ( १०५ ). हीने लोकोंनी मारकूट गालीगलोचा कमाकरतां कर्मपात्री केवल पामी मोक्षपौंता ॥ १६ ॥ बध परीसह ऊपर स्कंदका चार्यना शिष्यांनी कथा, सावत्थी नगरीनो जितशत्रुराजा तेनोपुत्र स्कंदककुमरे वैराग्यपामी पांचसे शिष्यसहित श्री मुनिसुव्रत स्वामीपासें दीक्षा लीधी बेहार करतां पोतानी बेन पुरंदरयशा दंडकराजानी राणी तेनेप्र तिबोधवाने अर्थे दशकदेशे गयो तिहां तेनो पालक नामाप्रधान राजाने उलटोसमळावी पांच सेसाधुन घाणीमा पीडी नाख्या पण साधुसर्वेक्षमायें अंतगड केवल थर्ड मोक्षगया एकस्कंदकाचायें क्रोधकररी मरणपामी अग्निकुमार देवताथई राजाना सर्वदे शवाली नस्मकस्या तेम नही करवो शिष्योंनी परे दमाकरवी ॥ १७ ॥ 11 याचना परीसहऊपर वलजद्रमुनिनी कथा, श्री नेमनाथना वचने जाण्योके द्वारकानगरीने द्वैपायन ऋषीनो जीव अग्निकुमार थईने बालसे ने कृष्ण जीनूं मरण जराकुमरने हाथथाशे इमजाणी घणी धर्मदलाली करी घणाने दीक्षादेवरावी अंते द्वार कानो दाहथयो तारे कृष्णबलदेवने जीवता मूक्या ते एकाएक पोतना कुटुंबपरिवारने बलतो देखी घणाज दलगीरथयी वनमांगया तिहां कृष्णजी ने तृषालागी तारे बलदेव पाणीलेवा गया क्रुघ्न वृक्ष नेनीचे सूताचे तेहवामां जराकुमारे सिंहजाणीबाण
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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