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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०८ देशिकः ३०८ व्याख्यानविधौ गुरूशिष्य योग्यताविषये गोष्टान्तः ३०९ चन्दनकन्थादृष्टान्तः ३११ चेटी - ( जीणश्रेष्ठिपुत्री ) दृष्टान्तः ३१२ बधिर गोहदृष्टान्तः ३१२ टङ्कवणिगुपमा ३९२ अयोग्यशिष्यलक्षणानि ३१२ योग्यशिष्यलक्षणोनि, गुर्वाशचना प्रक्रिया ३१३ योगायोग्यशिष्यविषयाः ३१३ १४ मुद्गाविष्टान्ताः ३१३ १. मुद्गशैलः ३१४ अयोगस्य सूत्रार्थ दाने दोषाः ३१५ २. भाविघट ३१५ ३ चालनी ३१६ ४. परिपूणक २१६५ हंसा ३१६ ६. महिषः ३१७ ७. मेषः ३१७८०९ मशक-जलू ३१७१०. बाली ३१७ ११. जाहकः ३१७१२. गौः ३१८ १३. भेरी ३१८ १४. आभीरी ३१९ उपोद्घातद्वारानि ३१९ १. देशद्वारम् ३१९ नामोदेशः ३१९ स्थापना - द्रव्य क्षेत्रोद्देशाः ३२२ काल-समास - अङ्गादिसमासोद्देशः ३२२ उद्देशोद्देशभावोद्देशौ ३२२ २. निर्देशद्वारम् ३२२ नाम-स्थापना द्रव्यनिर्देशाः ३२२ क्षेत्र कालनिर्देशौ ३२३ समासनिर्देशोदेशनिर्देश ३२३ भावनिर्देश प्रस्तुतोश च ३२४ व्यवहारनये निर्देशौ ३२५ बचने या पर्यायः www.kobatirth.org ३२६ मते निर्देशकलिङ्ग सामायिकस्य २२६ वचने धर्मः ३२७ शब्दनये वचनलिङ्गभेदेऽवस्तु । ३२७ वचनलिङ्गमेव वक्तुः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संक्षिप्त ग्रन्थ परिचय श्रीमद् [जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण महाराजे विशेषावश्यकभाष्य ग्रन्थनी रचना द्वारा जैन शासननी जे उत्तमोत्तम सेवा प्रभावना करी छे तेनुं मूल्यांकन अशक्य छे. ३६०३ गाथा प्रमाण आ महाप्रन्थ अने तेनी विशालज्ञानी भी मलधारी हेमचन्द्रसूरि महाराज कृत २८००० लोक प्रमाण विस्तृत टीकामां आवश्यक सूत्र अने सामायिक अध्ययननां विविध अंग-प्रत्यंगो अने अनेक पासाओनुं ऊंडाणवी सविस्तर तर्क -युक्ति- दृष्टान्तोथी भरपूर विवेचन कोइ पण बुद्धिशाळीने अहोभाव जगाडी जाय तेवुं छे । [4] ३२९ ३. निर्गमद्वारम् ३२९ निर्गमनिक्षेपार ३२९ इय्यनिर्गमः ३३० कालनिर्गमः ३३१ प्रशस्ता प्रशस्तभावाः - केटला बधा विषयो आ ग्रन्थमां सकळायेला छे एनो आ ग्रन्थनी विस्तृत विषयसूचि जोनारने सहज सवाल आनी जसे संक्षेपमां विषयो आ प्रमाणे छे. प्रारम्भमां मंगळवाद, स्वारवाद पृष्ठ २०० सुधी विस्तृत ज्ञानपंचक प्ररूपणा, ते पछी आवश्यकनो नामादिनिक्षेपथी विचार अपना नामादि निक्षेपण, ते पछी अनुयोगना उपक्रम निक्षेप अनुगम अने नय द्वाशेनुं विस्तारथी विवरण छे. एम उपक्रमना नामादि छ निशेष, ओघनिष्यन्नादि त्रण निक्षेपनुं द्वार अने अनुगममां उपोद्घातनियुक्ति सुंदर विस्तार छे. त्यारबाद नियुक्तिकारनी 'तित्थयरे भगवते' वाळी मंगलगाथाना विवरणमां तीर्थपदनु विवेचन सुंदर छे. सामायिक नियुक्तिना प्रारम्भमां ज्ञान चारित्र गौण मुख्य भाववाद, प्रन्थिभेद, सम्यत्व देशविरति तथा सर्वविरति सामायिकादि पांच प्रकारना चारित्र तथा अनुयोग शब्दना नामादि ६ निक्षेप - अननुयोगना नामादि ६ निक्षेप अने एमां श्रावकभार्या वगेरेना सात दृष्टान्तो मननीय छे. त्यार बाद व्याख्यानविथिमा गेोणी वगेरे छ दृष्टान्त तथा शिष्यनी योग्यता- अयोग्यताना विचारमां मगशेलीयो पत्थर वगेरे १४ दृष्टान्तो रोचक छे. सामाचिकना उपोद्घातमां उद्देशादि २६ द्वारोनुं विस्तृत विवेचन, एमां निर्गम द्वारमा छेके सम्पूर्ण गणवरवाद गूंथी लीयो छे. नवद्वार पण सरस छे अने एना समवतार द्वार पछी सप्ामिनयवाद अने ए पछी बोटीक दिगम्बर बाद प्रासंगिक भी लेवायो छे सूत्र स्पर्शिकनियुक्ति प्रारम्भ करतों नमस्कार महा मन्त्रनुं उत्पत्ति आदि १२ द्वरी विवेचन अने ते पछी सामायिकना 'करेमि ' पक्षी 'करण' विस्तृत विवेचन अने शेष सामायिक सूत्रना पदोनुं विवरण, आ गूढ अने हृदयंगम विषयोनी तात्त्विक चर्चा अने छणावटथी साचे ज आ ग्रन्थ जैन शासननो सार प्राप्त करवा माठे कूंची समान बनी रहे तेवो छे. दिव्य दर्शन ट्रस्ट तरफधी पुनर्मुद्रित करवामां आवेल आ प्रन्धनुं प्रकाशन सर्व जीवनुं कल्याण करतो यावच्चन्द्र दिवाकरौ झळहळया करे एज शुभेच्छा. - मुनि जयसुंदरविजय For Private and Personal Use Only
SR No.020904
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyadarshan
PublisherDivyadarshan
Publication Year
Total Pages339
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size69 MB
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