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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) तत्व आदि विषयों पर मि० गांधी के उपयुक्त व्याख्यान हुये तब से मि. गांधी की विद्वता का परिचय जैनेत्तर विद्वान मण्डल में भी होगया और लोग जानने लगे कि जैन धर्म अज्ञात परन्तु उत्कृष्ट धर्म है । बम्बईकी बुद्धिवर्धकसभा, आर्यसमाज थियोसाफिकल सोसाइटी आदि संस्थाओं में भी मि. गांधी ने जैन धर्म पर व्याख्यान दिये ॥ . अमेरिका से फिर आमन्त्रण इधर इस प्रकार स्वदेश में देशबंधुओं को जैन धर्म का परिचय कराने का पवित्र कार्य चल रहाथा । उधर मि० गांधी को अमेरिकावालों की ओर से एक पर एक मंत्रण आरहे थे कि वे अमेरिका जाकर वहां के निवासियों को जैन धर्म का विशेष परिचय करावें । स्वधर्म के परिचय कराने की तीव्र इच्छा रखते हुए, जेनों के तत्वज्ञान के प्रति रुचिको तृप्त करन का आमंत्रण कौनसा धर्माभिमानी पुरुष अस्वीकार करेगा ? तुरन्त ही मि० बीरचन्द सन् १८६६ में पुनः दूसरीबार अमेरिका को गये। इस वार जाते समय २० अगस्त को मांगरोल जैन सांगीत मंडली की ओर से मान पत्र दिया गया था। इसका मूल (अंग्रेजी) और अनुबाद अन्यत्र प्रकाशित है। - इस समय अमेरिका में कुछ महीने रहकर और कुछ महीने इंगलैंड में रहकर अपने व्याख्यान दिये थे । साथही साथ बैरिस्टरी का अध्ययन भी करने लगे इस प्रकार धर्म प्रचार का उद्योग चल रहा था कि इनको फिर जैन बंधुओं ने हिन्दुस्तान बुलालिया । बुलाने का यह कारण था कि जैन समाज के हित के लिये ( सेव्रोटरी आफ स्टेट भारत मन्त्री) के यहां एक अपील करनी थी। मि. गांधी की योजना सब को पसन्द आई। For Private and Personal Use Only
SR No.020902
Book TitleVirchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamlal Vaishya Murar
PublisherJainilal Press
Publication Year1919
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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