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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उन्होंने मि वीरचन्द को इस समय द्रव्य से सहायता देकर बड़ा अच्छा किया था। इस व्यवसाय में फस जाने के कारण श्रीवीरचन्द ने जैन समाज के हित और आवश्यक कार्यों के प्रति दुर्लक्ष नहीं दिया । ऐसी समय जैन समाज को दुख पहुंचाने बाली, हृदय द्रावक घटना घटी, उसके दूर करने के लिये जैनियों की उंगली कर्तव्य निष्ट वीरचन्द गांधी कीही ओर उठी। शिखर जी पर अत्याचार यह घटना थी शिखर जी पर अत्याचार । सन् १८६१ ई० में मि० बेडम नामी अंग्रज ने जैनियों के पवित्र क्षेत्र सम्मंद शिखर पर जिसे अंग्रज पारसनाथ हिल कहते हैं, चरबी बनानका कारखाना और पशु हत्याग्रह खोलना चाहा था। इस सूचना से सारा जैन समाज प्रक्षुब्ध हो गया और अंगरजी कारखाने के विरुद्ध कलकत्सा में नीचे की कोर्ट में फर्याद पेश की। वहां से जैनियों के विरुद्ध फैसला मिला इसपर उसकी अपील हाईकोर्ट में कीगई। इसी के लिए मि. गांधी की आवश्यकता पड़ी और वे कलकत में पाए । वहांपर रह कर उन्हों ने बंगाली भाषा को सीखा और फिर देशी भाषा में जो जो कागज मकदमे के लिये उपयोगी थे उन सब का अंग्रेजी में अनुवाद करक सबूत के लिये हाई कोर्ट में पेश किये । इसी प्रकार फितनं ही शिला लेख, ताम्र पत्र, और प्राचीन लेखों की सहायता से कोर्ट में शिखर जी पर्वत पर जैनियों का अधिकार प्रमाणित कर दिया । दीर्घ उद्योग तथा उत्साह के साथ हाईकोर्ट For Private and Personal Use Only
SR No.020902
Book TitleVirchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamlal Vaishya Murar
PublisherJainilal Press
Publication Year1919
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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