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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसोसियेशन आफ इंडिया नामक संस्थाकी स्थापना हुई। इसके सेक्रेटरीका पद सम्मानपूर्वक और गौरव सहित श्रीवीरचंद को सं० १६४१ में सौंपागया । जबसे सार्वजनिक कार्य करने की शक्ति तीक्षण हुई और मि० पीरचन्द की कर्तत्वशक्ति के कारण संस्था को यश प्राप्त हुअा (सं. १६४१ जैन मंडल में एक्यता होने का विवरण तथा सुधार और सं. १६४२ में हुकूम मुनि और तत्सम्बन्धी विचार, +शत्रुञ्जय तीर्थ संवन्धी खुशकारक वृतांत तथा जैन भाइयों में होने योग्य सांसारिक धार्मिक और राजकीय सुधार आदि विषयों पर जो भाषण चरितनायक ने दिये हैं वे ऐसो सियेशन से प्रकाशित होनेवाले भाषण संग्रह में है। ... (४) जानबरों की हत्या न होने देना ऐसा उपाय करना तथा जीव दया का पोषण करना और करवाना। (५)भिन्न २ स्थानों तथा तीर्थो की यात्रा करने वाले यात्रियों को सुगमता पड़, कोई अड़चन न हो, ऐसा उपाय करना साथही जैन भाई संसारिक धार्मिक और राजकीय सुधारों में अगवा हो ऐसा उपाय करना। +शत्रुञ्जय पर्वत के पास मुरजकुन्ड के नजदीक श्रीऋषभदेव भगवान की पादुका स्थापित थीं। ता० ७ जून १८८५ को मालूम हुग कि कोई उसे खोद गया । ता. १६ जून को वह खोगई। वहां के ब्राह्मणों के गुरू दत्तात्रय थे। उन्हों ने यह फरयाद की ( कि कोई कहता है कराई गई ) कि श्रापकोनही पादुका खो दी हैं और गुम कीहै । इस पर श्रावकों के रखेहुये नौकरों को मारपीट के साथ पकड़ लिया । इस सम्बन्ध में For Private and Personal Use Only
SR No.020902
Book TitleVirchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamlal Vaishya Murar
PublisherJainilal Press
Publication Year1919
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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