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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) नहीं लिखा लाया। किसी न किसी दिन काल के गाल जाना ही पडेगा । परन्तु जिसने कर्तव्य निष्ट होकर संसार कठिनाइयों को परवाह न करके बड़े बड़े कठिन अवसरों पार कर के मृत्यु पाई वह महापुरुष मरकर भी अमर हैं। का प्रशंसनीय चरित्र लोगों के हृदयों पर अंकित रहता हैं। जिनको वास्तविक अपना मानव जीवन कृतार्थ करने के लिये निर्वाह करना है उनको यह भली प्रकार से समझ लेना चाहिये कि इस स्थूल शरीर को त्यागने सेही महान् पुरुषों की मृत्यु नहीं होती, उनका अक्षर देह कीर्ति रूप में अमर रहता है। जो इस क्षण भंगुर संसार यात्रा में अपने अमूल्य मानवो जीयन का मूल्य बिलकुल नहीं जानते । क्या उनका जीवन खंटे अगाड़ी पिछाड़ी से बंधे हुए घोड़ के समान नहीं है ? मनष्य में और पश में अन्तर ही क्या हैं ? दोनों का आहारविहार समान हैं। दोनों आनन्द उड़ाते हैं । परन्तु जो मनुष्य अपना जीवन परमार्थ में बिताकर कर्तव्य परायण रहता है, उसी का पानवी जीवन सफल है। श्रीमंतों के पास कुबेर का खजाना हो तो क्या ? जिस धन में से भोग विलास के सिवा अन्य किसी परमार्थ श्रादि में एक कौड़ी भी खर्चन हुनाहो तो उसके पास धन होतो क्या और न होतो क्या ? सांप के फन में रहने वाली. मणि और हाथी के मस्तक में रहनेवाला मोती भी धन है ! हम को हमारे पूर्व पुण्य के उदय से धन मिला है ५ समझ कर जो श्रीमंतलोकोपकार के लिये अपना धन खर्च करते हैं, वही धन प्रयोजनीय है; दूसरे धन से क्या लाभ । ऐसे ही धनवान प्रशंसनीय है। कहने का सारांश यह है कि मनुष्य जीवन के हेतु कलव्य तत्परता व्यक्त करवाना है । For Private and Personal Use Only
SR No.020902
Book TitleVirchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamlal Vaishya Murar
PublisherJainilal Press
Publication Year1919
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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