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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५.१४१] पञ्चदशोऽधिकारः १५७ मत्वेति देव भक्त्याहं त्वन्नामार्थी सुनाममिः । करोमि ते स्तवं भक्त्या ह्यष्टोत्तरशतप्रमैः ॥१२६॥ धर्मराड् धर्मचक्री त्वं धर्मी धर्मक्रियाग्रणीः । धर्मतीर्थकरो धर्मनेता धर्मपदेश्वरः ।।१२७॥ धर्मकर्ता सुधर्माल्यो धर्मस्वामी सुधर्मवित् । धाराध्यश्च धर्मीशो धर्मीड्यो धर्मबान्धवः ॥१२०॥ धर्मिज्येष्ठोऽतिधर्मात्मा धर्मभर्ता सुधर्मभाक् । धर्मभागी सुधर्मज्ञो धर्मराजोऽतिधर्मधीः ॥१२९॥ महाधर्मी महादेवो महानादो महेश्वरः । महातेजा महामान्यो महापूतो महातपाः ॥१३॥ महात्मा च महादान्तो महायोगी महाव्रती । महाध्यानी महाज्ञानी महाकारुणिको महान् ॥१३१॥ महाधीरो महावीरो महा_ो महेशता । महादाता महात्राता महाकर्मा महीधरः ॥१३॥ जगन्नाथो जगद्भर्ता जगत्कर्ता जगत्पतिः । जगज्ज्येष्ठो जगन्मान्यो जगत्सेव्यो जगन्नुतः ॥१३३॥ जगत्पूज्यो जगत्स्वामी जगदीशो जगद्गुरुः । जगद्वन्धुर्जगजेता जगन्नेता जगत्प्रभुः ॥१३४॥ तीर्थकृत्तीर्थभूतात्मा तीर्थनाथः सुतीर्थवित् । तीर्थकरः सुतीर्थात्मा तीर्थेशस्तीर्थकारकः ॥१३५॥ तीर्थनेता सुतीर्थज्ञः तीर्थाीस्तीर्थनायकः । तीर्थराजः सुतीर्थाङ्कस्तीर्थभृत्तीथकारणः ॥१३६।। विश्वज्ञो विश्वतत्त्वज्ञो विश्वव्यापी च विश्ववित् । विश्वाराध्यो हि विश्वेशो विश्वलोकपितामहः ॥१३७॥ विश्वाग्रणीहि विश्वात्मा विश्वाच्यों विश्वनायकः । विश्वनाथो हि विश्वेड्यो विश्वध्दविश्वधर्मकृत् ॥१३॥ सर्वज्ञः सर्वलोकज्ञः सर्वदर्शी च सर्ववित् । सर्वात्मा सर्वधर्मशः सार्वः सर्वबुधाग्रणीः ॥१३९॥ सर्वदेवाधिपः सर्वलोकेशः सर्वकर्महृत् । सर्वविद्येश्वरः सर्वधर्मकृत्सर्वशर्मभाक् ॥१४०॥ एतैर्भूतार्थनामौघैः स्तुतस्त्वं त्रिजगत्पते । स्तोतारं मां स्वकारुण्यात्वन्नामसदृशं कुरु ॥१४१॥ लेता है, अर्थात् आप-जैसा बन जाता है ॥१२५।। ऐसा मानकर हे देव, आपके नामोंको पानेका इच्छुक मैं भक्तिसे एक सौ आठ उत्तम नामोंके द्वारा आपका स्तवन करता हूँ॥१२६।। हे भगवन , आप धर्मराजा, धर्मचक्री, धर्मी, धर्मक्रियामें अग्रणी, धर्मतीर्थके प्रवर्तक. धर्मनेता और धर्मपदके ईश्वर हैं ॥१२७।। आप धर्मकर्ता, सुधर्माढ्य, धर्मस्वामी, सुधर्मवेत्ता, धर्मीजनोंके आराध्य, धर्मीजनोंके ईश्वरधर्मी जनोंके पूज्य और सर्वप्राणियोंके धर्मबन्धु हैं ॥१२८॥ आप धर्मीजनोंमें ज्येष्ठ हैं, अतिधर्मात्मा हैं, धर्मके स्वामी हैं और सुधर्मके धारक एवं पोषक हैं । धर्मभागी हैं, सुधर्मज्ञ हैं, धर्मराज हैं और अति धर्मवृद्धिवाले हैं ॥१२९॥ महाधर्मी हैं, महादेव हैं, महानाद, महेश्वर, महातेजस्वी, महामान्य, महापवित्र और महातपस्वी हैं ॥१३०॥ आप महात्मा हैं, महादान्त (जितेन्द्रिय), महायोगी, महाव्रती, महाध्यानी, महाज्ञानी, महाकारुणिक (दयालु) और महान हैं ॥१३१॥ आप महाधीर, महावीर, महापूजाके योग्य और महान ईशत्वके धारक हैं । आप महादाता, महात्राता, महान कर्मशील और महीधर हैं ॥१३२।। आप जगन्नाथ, जगद्-भर्ता, जगत्कर्ता, जगत्पति, जगज्ज्येष्ठ, जगन्मान्य, जगत्सेव्य और जगन्नमस्कृत हैं ॥१३३॥ आप जगत्पूज्य, जगत्स्वामी, जगदीश, जगद्गुरु, जगबन्धु, जगज्जेता, जगन्नेता और जगत्के प्रभु है ॥१३४॥ आप तीर्थकृत , तीर्थस्वरूपात्मा, तीर्थनाथ, सुतीर्थवेत्ता, तीर्थंकर, सुतीर्थात्मा, तीर्थेश और तीर्थकारक हैं, ॥१३५।। आप तीर्थनेता, सुतीर्थज्ञ, तीर्थ-पूज्य, तीर्थनायक, तीर्थराज, सुतीर्थाङ्ग, तीर्थभृत् और तीर्थकारण हैं ॥१३६।। आप विश्वज्ञ, विश्वतत्त्वज्ञ, विश्वव्यापी, विश्ववेत्ता, विश्वके आराध्य, विश्वके ईश और विश्व ( समस्त) लोकके पितामह हैं ॥१३७॥ आप विश्वके अग्रणी हैं, विश्वस्वरूप हैं, विश्वपूज्य, विश्वनायक, विश्वनाथ, विश्वाज़, विश्वधृत् और विश्वधर्मकृत् हैं ॥१३८।। हे भगवन , आप सर्वज्ञ हैं, सर्व लोकके ज्ञाता हैं, सर्वदर्शी और सर्ववेत्ता हैं। आप सर्वात्मस्वरूप हैं, सर्वधर्मके ईश हैं, सार्व ( सबके कल्याणकारी ) हैं और सर्व बुधजनोंमें अग्रणी हैं ॥१३९।। आप सर्वदेवोंके अधिपति हैं, सर्वलोकके ईश हैं, सर्वकर्मोंके हर्ता हैं, सर्वविद्याओंके ईश्वर हैं, सर्वधर्मके कर्ता और सर्व सुखोंके भोक्ता हैं ॥१४०॥ हे त्रिजगत्पते, इन यथार्थ For Private And Personal Use Only
SR No.020901
Book TitleVir Vardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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