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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पादकीय भगवान् महावीरकी पचीस सौवीं निर्वाण तिथिके महोत्सवके समय विभिन्न भाषाओं में रचित सभी महावीर-चरितोंका प्रकाशन किया जाना आवश्यक है, ऐसा निर्णय भारतीय ज्ञानपीठके संचालकोंने किया और तदनुसार संस्कृत भाषामें रचित प्रस्तुत चरितके सम्पादनका कार्य मुझे सौंपा गया। इसका सम्पादन ऐ. पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन ब्यावरकी प्रतियोंके आधारपर किया गया है। प्रतियोंका परिचय प्रस्तावनामें दिया गया है। उन प्रतियोंके अतिरिक्त पुरानी हिन्दीमें सकलकीतिके इस चरितके अनुवादकी एक हस्तलिखित प्रति भी उक्त सरस्वती-भवनमें है। यद्यपि उसमें लेखन-काल नहीं दिया है, तथापि वह लगभग १०० वर्ष पुरानी अवश्य है। उसमें भाषाकारने आदि या अन्तमें कहीं भी अपना नाम नहीं दिया है। पर अनुवादमें प्रत्येक अधिकारकी श्लोक संख्या मूलके समान ही दी गयी है। अनेक सन्दिग्ध स्थलोंपर इस प्रतिका उपयोग किया है। पाढमनिवासी स्व. पं. मनोहरलालजी शास्त्रीने भी प्रस्तुत चरितका हिन्दी अनुवाद किया था, जिसे उन्होंने स्वयं ही अपने ग्रन्थोद्धारककार्यालयसे वि. सं. १९७३ में प्रकाशित किया था, जो कि इधर अनेक वर्षोंसे अप्राप्य है। इसके अनुवादमें श्लोक संख्याके अंक नहीं दिये गये हैं और मिलान करनेसे ज्ञात हुआ है कि अनेक स्थलोंपर अनेक श्लोकोंका अनुवाद भी नहीं है। प्रथम अधिकारके श्लोक ११ से लेकर ३३ तकके श्लोकोंका अनुवाद न देकर एक पंक्तिमें केवल यह लिख दिया गया है कि "इसी तरह शेष तीर्थकर जो ऋषभदेव आदिक हैं उनको भी तीन योगोंसे नमस्कार करता है।" फिर भी इस अनुवादसे अनेक सन्दिग्ध स्थलोंपर मूल पाठके संशोधन करने में सहायता मिली है। सरस्वती भवनकी 'अ' संकेतवाली प्रतिको आदर्श मानकर मूलका सम्पादन किया गया है। प्रतिके अति जीर्ण होनेसे अनेक स्थलोंपर कुछ अक्षर खिर जानेसे उनकी पूर्ति अन्य प्रतियोंसे की गयी है। उन्नीसवें अधिकारके पाँच श्लोकोंके खण्डित अंशोंकी पूर्ति आमेर ( जयपुर ) के भण्डारको प्रतिसे हुई है। इसके लिए मैं डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल जयपुरका आभारी हूँ। प्रस्तुत चरितके प्रकाशनके लिए मैं भारतीय ज्ञानपीठके संचालकोंका आभारी हूँ। ऐ. पन्नालाल दि.जैन सरस्वती भवन, ज्यावर २०-८-७३ -हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री न्यायतीर्थ For Private And Personal Use Only
SR No.020901
Book TitleVir Vardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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