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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विषयानुक्रमाणिका] हिन्दीभाषाटीकासहित (६६) विषय पृष्ठ विषय पृष्ठ के रूप में उत्पन्न होना तथा उस का महाराज सुमुख गाथापति के द्वारा श्री सुदत्त अनगार ६२४ विजय के साथ विवाहित होना । का आदर सत्कार करना और विशुद्ध अजूश्री महारानी की योनि में शूल का ५३५ | भावनापूर्वक मुनिश्री को आहार देना। उत्पन्न होना, परिणामस्वरूप अधिकाधिक परिणामस्वरूप उस के घर में ५ प्रकार के वेदना का उपभोग करना। दिव्यों का प्रकट होना और मनुष्यायु को अजूश्री के आगामी भवों के सम्बन्ध में ५३८ | बान्धना. मत्यु के अनन्तर हस्तिशीर्षक नगर श्री गौतम स्वामी जी का भगवान महावीर में अदीनशत्रु राजा की धारिणी रानी स्वामी से पूछना। की कुक्षि में पुत्ररूप से उत्पन्न होना, तथा भगवान महावीर का अञ्जूश्री के आगामी ५३६ / बालक ने जन्म लेकर युवावस्था को प्राप्त कर भवों का मोक्षपर्यन्त वर्णन करना । सांसारिक सुखों का अनुभव करना । द्वितीय श्र तस्कन्धीय सुबाहकुमार नामक | श्री गौतम स्वामी जी का भगवान महावीर ६३७ प्रथम अध्ययन स्वामी से सुबाहुकुमार की अनगारवृत्ति को धारण की समर्थता के विषय में पूछना। प्रथम अध्ययन की उत्थानिका । ५४६ | श्री सुबाहुकुमार जी का श्रमणोपासक होना द्वितीय श्रुतस्कन्ध में वर्णित दश महापुरुषों ५५० तथा पौषधशाला में किसी समय तेलाका नामनिर्देश, तथा प्रथम अध्ययन के पौषध करना। प्रतिपाद्य विषय को पृच्छा। श्री सुबाहुकुमार के मन में इस विचार का उत्पन्न ६४४ श्री सुबाहुकुमार जी का संक्षिप्त परिचय । ५५७ होना कि जहां भगवान महावीर विहरण श्री सुबाहुकुमार जी का भगवान् महावीर ५७० करते हैं वे ग्राम, नगर आदि धन्य हैं, जो स्वामी के पास श्रावक के बारह व्रतों को भगवान महावीर के पास अनगारवृत्ति धारण करना। अथवा श्रावकवृत्ति को धारण करते हैं श्रावक के बारह व्रतों का विवेचन। ५७६ और भगवान् की वाणी सुनते हैं वे भी चम्पानरेश कूणिक की प्रभुवीरदर्शनार्थ कृत ५६६ | धन्य हैं। यदि भगवान् अब कि यहां यात्रा का वर्णन । पधार जाएं तो मैं भी भगवान के चरणों श्री जमालिकुमार जी की वीरदर्शनयात्रा ६०२ | में अनगारवृत्ति को धारण करूगा । का वर्णन । सुबाहुकुमार के कल्याण के निमित्त श्रमण ६४६ श्री गौतम स्वामी जी का भगवान महावीर ६०५ / भगवान महावीर स्वामी का हस्तिशीर्ष स्वामी से श्री सुबाहुकुमार जी की विशाल | नगर में पधारना तथा भगवान के चरणों में मानवी ऋद्धि के विषय में पूछना। श्री सबाहुकुमार का दीक्षित होना। सुमुख गाथापति का संक्षिप्त परिचय तथा ६१६ | श्रेणिकपुत्र मेघकुमार का जीवनपरिचय। ६५५ सुदत्त अनगार का सुमुख गाथापति के घर | श्री सुबाहुकुमार द्वारा ज्ञानाभ्यास तथा तप ६६६ में पारणे के निमित्त प्रवेश करना । | का पारावन करना । अन्त में समाधिपूर्वक For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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