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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir परिशिष्ठ नं. ३ श्री विपाकसूत्रीय शुद्धिपत्रक' अशुद्ध .. शुद्ध पृष्ठ पंक्ति | अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ पंक्ति | अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ पंक्ति पाउभूया पाऊभूया १ ५ की . का १६ . २३ | स्त न स्त ३२ २१ चोपगतः वोपागतः १ २० | प्रात .. प्राप्त १६ २३ | रयीन्त . रयन्ति , ३० संम्पएणे . सम्पन्ने २ ३ | ग्यारवें ग्यारहवें २०२२ | पधारने पधारने का३४ १३ करोति करेति २ १६ | पट्टराणी पटरानी २२ १ पार पर , १६ पूर्व पूर्वो २ २५] सर्वतु सर्वतक० २२ २५ हुआ रहा रहा हुआ ३६ २३ आर ओर ३. २ | पगुलो पंगुलो २२ २८ तोंहो ३७ २ ग्यारवां ग्यारहवां ३ ४ रहस्सियसि रहस्सियसि २३ २२ चापल्यभावात् चापल्यावाधा बाधा ३ १७ श्राकार आकार २४ १५ भावात् , ३२ भी। भी ४ ३३ | भांती भाँति २४ २३ | | अधे . अंधे ३८ ३४ पाठ ७.५ | निग्गछति निग्गच्छति२५ २० वीत्थ , वत्थ ४० ३ वारय वारिय ७ १४ । किं नन किं २६.२० श्रमण : .यावत श्रमण ४१ १ अवज्जं अवंझ ७ १६ | दक्षिण दक्षिणं २६ २५ चतुविध चतुर्विध ४३ ३ ब्रतः व्रतः ७ २३ | शीर्ष शीर्ष २६ ३० | पठान्तर्गत पाठान्तर्गत ४६ ३ मनपर्यव मनःपर्यव २ भाव भावः २६ ३४ तरिमन् तस्मिन् ४६ १३ मन-पर्याय मनःपर्याय ६ ३२ | निगच्छति निग्गच्छति२७. ५ च हरति चाहरति ४६ २३ शिष्थ शिष्य १० ४ तीयसे तीसे य २७ २० सोणिय सोणियं ४७१ बन बन ११ १३ तीब्र तीव्र २६ ३३ शोणियं सोणियं ४७ २१ विशिष्ठ विशिष्ट ११ २० सात्विक, सात्विक ३१ ७ गातमस्स गोतमस्स ,, २३ ऋषभ ऋषभ ११ ३१ | धमप्राण धर्मप्राण ३१ १० स्वादिम खादिम ४८ ३२ ऋषि ऋषि १४ २५ | देना किया देनी की ३१ १२ भौंरे भोयरे ४६ १६ प्रचीन प्राचीन १४ २ | निष्कम - ‘निष्कर्म ३१ १२ / बलक वालक ५० ११ उसे उस पर १६ १५ | निगच्छन्ति निग्गच्छन्ति ,, २१ | शोणियं सोणियं ५० २४ की को १६ १५ | २७ के २७ , रिद्ध ऋद्ध ५२ २३ (१) प्रैस वालों की असावधानी से जो अर्धविरामचिन्ह, पूर्णविरामचिन्ह तथा संयोगचिन्ह आदि चिन्ह गिर गए हैं या अनावश्यक लग गए हैं, पाठक उन्हें स्वयं सुधार कर पढने की कृपा करें। इस के अतिरिक्त अनेक स्थलों पर मात्रायें, ऊर्ध्वरेफ तथा अनुस्वार अस्पष्ट हैं या गिर गए हैं, पाठक उन्हें भी सुधार लें । मात्र दिग्दर्शन के लिये हम ने ऊपर मात्रा एवं ऊर्ध्वरेफ से रहित कुछ शब्दों का शुद्ध रूप भी दे दिया है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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