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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अथ अष्टम अध्याय इस अध्ययन की रचना भी सुपात्रदान के महत्त्ववोधनार्थ ही हुई है। धर्म का अाराधन इस मानव प्राणी को कितना ऊंचा ले जाता है तथा उसे अपने गन्तव्य स्थान को प्राप्त कराने में कितना सहायक होता है ? यह भद्रनन्दी के जीवनवृत्तान्तों से सहज ही में हृदयंगम हो सकता है । भद्रनन्दी का विवरण निम्नोक्त है-- मूल--'अट्ठमस्स उक्खेवो । सुघोसं णगरं । देवरमणं उज्जाणं । वीरसेणो जक्खो । अज्जुणो गया। तत्तवती देवी । भदनंदी कुमारे । सिरीदेवीपामोक्खाणं पंचसयाणं रायवर-- कन्नगाणं पाणिग्गहणं जाव पुब्वभवे । महाघोसे णगरे। धम्मघोसे गाहावती । धम्मसीहे अणगारे पडिलाभिते । जाव सिद्ध । निक्खेवो । ॥अट्ठमं अज्झयणं समत्तं ॥ पदार्थ-अहमस्स- अष्टम अध्ययन का । उक्खेवो-उत्क्षेप - प्रस्तावना पूर्व की भान्ति जान लेना चाहिये । सुघोसं-सुबोष नाम का। णगरं - नगर था। देवरमणं- देवरमण नामक। उज्जाणं-उद्यान था । वीरसेणे -वीरसेन । जक वो-यक्ष का आयतन -स्थान था । अज्जुणो - अर्जुन । राया-राजा था। तत्तवती-तत्त्ववती । देवी-देवी थी। भद्दनन्दी-भद्रनन्दी नामक । कुमारे-कुमार था। सिरीदेवीपामोक्खाणं - श्रीदेवीप्रधान । पंचसयाणं-५०० । रायवरकन्नगाणं-श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ । पाणिग्गहणं-पाणिग्रहण किया गया । जाव-यावत् । पुत्वभवे - पूर्वभव की पृच्छा की गई । महाघोसे - महाघोष नामक । णगरे - नगर था। धम्मघोसे-धर्मघोष । गाहावती - गाथापति था। धम्मसीहे-धर्मसिंह । अणगारे -अनगार को। पडिलाभिते-प्रतिलाभित किया गया । जाव-यावत् । सिद्ध-सिद्ध हो गया। निक्वेयो-निक्षेप - उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए । अट्ठमं-अष्टम । अज्झयणं-- अध्ययन । समत्त-सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-अष्टम अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिये । सुघोष नामक नगर था । वहां देवरमण नामक उद्यान था। उस में वीरसेन नामक यक्ष का स्थान था। नगर में अर्जुन नाम के राजा का राज्य था। उस की तत्ववती रानी और भद्रनन्दी नामक कुमार था। उस का श्रीदेवीप्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ । उस समय तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी उद्यान में पधारे । तदनन्तर भद्रनन्दी का भगवान से श्रावकधर्म स्वीकार करना । गणधरदेव गौतम स्वामी का भगवान से उस के पूर्वभव के सम्बन्ध में पुच्छा करनी और भगवान का उत्तर देते हुए फरमाना कि गौतम ! महाघोष नगर था । वहां (१) छाया-अष्टमस्योत्क्षेपः । सुघोषं नगरम् । देवरमणमुद्यानम् । वीरसेनो यक्षः, । अर्जुणो राजा, तस्ववती देवी । भद्रनन्दी कुमारः । श्रीदेवीप्रमुखाणां पंचशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणम् । यावत् पूर्वभवः । महोघोष नगरम् । धर्मघोषो गाथापति : । धर्मसिंहोऽनगार: प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः । निक्षेपः । ॥ अष्टमाध्ययनम् समाप्तम्।। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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