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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विषयानुक्रमणिका श्री विपाकसूत्र विषय पृष्ठ | विषय गर्भस्थ जीव के शरीर में अग्निक-भस्मक व्याधि ८० महावीर स्वामी से उस के पूर्वभव के सम्बका उत्पन्न होना । न्ध में प्रश्न करना। मृगादेवी के एक जन्मान्ध और प्राकृतिमात्र ८२ हस्तिनापुर नगर के गोमण्डप का वर्णन । १३७ बालक का उत्पन्न होना और उस को कूड़े भीम नामक कूटप्राह की उत्पला नामक भार्या १३६ कचरे के ढेर पर फेंकने के लिए दासी को | को दोहद उत्पन्न होना। आदेश देना। | दोहद का स्वरूप और उसकी पूर्ति के लिए १४१ रानी की आज्ञा के विषय में दासी का राजा ८५ | उसे पति का आश्वासन देना । से पूछना, अन्त में बालक का भूमिगृह में भाम कटग्राह के द्वारा अपनी भायो के दाहद १४६ पालन पोषन किया जाना। की पूर्ति करना। गौतम स्वामी का मृगापुत्र के अगले भवों के ८८ उत्पला के यहाँ बालक का जन्म और उस का १४६ सम्बन्ध में भगवान महावीर से पूछना। गोत्रास नाम रखना, तथा भीम कूटप्राह का भगवान का मृगापुत्र के मोक्षपर्यन्त अगले ८८ मृत्यु का प्राप्त होना। सभी भवों का प्रतिपादन करना । सुनन्द राजा का गोत्रास को कृटप्राहित्य पद पर १५३ जातिकुलकोटि शब्द की व्याख्या । स्थापित करना और गोमांस आदि प्रतिक्रमण शब्द पर विचार । के भक्षण द्वारा गोत्रास का मर कर नरक समाधि शब्द का पर्यालोचन । में उत्पन्न होना। श्री दृढ़प्रतिज्ञ का संक्षिप्त परिचय । गोत्रास के जीव का विजयमित्र नामक १५६ अथ द्वितीय अध्याय सार्थवाह की सुभद्रा नामक भार्या के यहां | बालकरूप से उत्पन्न होना और उस का द्वितीय अध्याय की उत्थानिका के साथ साथ १०४ । “उज्झितक कुमार" ऐसा नाम रखा जाना । वाणिजग्राम नामक नगर में अवस्थित काम- विजयमित्र सार्थवाह का अपने जहाज़ समेत १६१ ध्वजा वेश्या का वर्णन । समुद्र में डूबना और पतिवियोग से दुःखित ७२ कलाओं का विवेचन । १०८' सुभद्रा सार्थवाही का भी मृत्यु का प्राप्त होना। उज्झितककुमार का पारिवारिकि परिचय। ११६ उज्झितककुमार का घर से निकाल दिया जाना १६६ भगवान महावीर स्वामी का वाणिजग्राम १२१ और उस का स्वच्छन्द हो कर भ्रमण करने के नगर में पधारना और गौतम स्वामी जी का साथ २ कामध्वजा वेश्या के सहवास में पारणे के लिए नगर में जाना। रहना। भगवान गौतम का वाणिजग्राम नगर के राज- १२३ महाराज विजयमित्र की महारानी श्री- १६६ मार्ग में वध के लिये लेजाए जाते हुए उज्झितक- देवी को योनिशूल का होना तथा उज्झितककुमार को देखना । कुमार को कामध्वजा वेश्या के घर से उज्झितककुमार की दयनीय अवस्था से प्रभा- १३१ निकाल कर राजा का वेश्या को अपने महलों वित हुए अनगार गौतम का भगवा में रखना । इस के अतिरिक्त उज्झितककुमार For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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