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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६३२] श्रीविपाकसूत्रीय द्वितीय श्रुतस्कन्ध [प्रथम अध्याय के पाप का संचय नहीं किया प्रत्यत पुण्य का उपार्जन किया है। इस कथासंदर्भ से यह बात भलीभाँति सिद्ध हो जाती है कि जो लोग यह समझते या सोचते हैं कि हाय ! हम न तो करोड़पति हैं, न लखपति । यदि होते तो हम भी दान करते, वे भूल करते हैं । समुख गायापति ने कोई करोड़ों या लाखों का दान नहीं किया किन्तु थोड़े से अन्न का दान दिया था। उसी ने उस के संसार को परिमित कर दिया । अतः इस सम्बन्ध में किसी को भी निराश नहीं होना चाहिये । दान की कोई इयत्ता नहीं होती, वह थोड़ा भी बहुत फल देता है और बहुत भी निष्फल हो सकता है । दान की फलता और विफलता का आधार तो दाता के भावो पर निर्भर ठहरता है । देय वस्तु स्वल्प हो या अधिक इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता, अन्तर का कारण तो भावना है । दान देते समय दाता के हृदय में जैसी भावना होगी उसी के अनुसार ही फल मिलेगा। भावना का वेग यदि साधारण होगा तो साधारण फल मिलेगा और यदि वह असाधारण होगा तो उस का फल भी असाधारण ही प्राप्त होगा। तात्पर्य यह है कि पापं. पुण्य और निर्जरा में सर्वप्राधान्य भावना' को ही प्राप्त है। भावनाशून्य हर एक अनुष्ठान निस्सार एवं निष्प्रयोजन है। - संसार में दान का कितना महत्त्व है ? यह सुमुख गाथापति के जीवन से सहज ही में ज्ञात हो जाता है । वास्तव में दान के महत्त्व को समझाने के लिये ही इस कथासन्दर्भ का निर्माण किया गया है, अन्यथा गौतमस्वामी अपने ज्ञानबल से स्वयमेव सब कुछ जान लेने में समर्थ थे ऐसा न कर सब के सन्मुख सेमुख गृहपति के जीवन को भगवान् से पूछने का यत्न करना निस्सन्देह सांसारिक प्राणियों को दान की महिमा समझाने के लिये ही उन का पावन प्रयास है, तथा दान के प्रभाव को दिखजाने के निमित्त ही सूत्रकार ने सुमुख गृहपति को, कई सौ वर्ष तक सानंद जीवन व्यतीत करने के अनन्तर मृत्यधर्म को प्राप्त हो कर महाराज अदीनशत्रु की सती साध्वी धारिणी देवी के गर्भ में पुत्ररूप से उत्पन्न होने और जन्म लेकर वहां के विपुल ऐश्वर्य का उपभोग करने वाला कहा है। भगवान् कहते हैं - गौतम! इस सुमुख गृहपति का पुण्यशाली जीव ही धारिणी देवी के गर्भ में श्राकर सुबाहुकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ है। इस से यह सुबाहुकुमार पूर्वजन्म में कौन था । इत्यादि प्रश्नों का उत्तर भली भाँन्ति स्फुर हो जाता है प्रस्तुत कथासन्दर्भ के उत्तर में गौतम स्वामी की ओर से किये गए प्रश्नों के उत्तर में भगवान ने जो कुछ फ़रमाया, उस से निष्पन्न होने वाले सारांश की तालिका नीचे उदत की जाती हैगौतमस्वामी श्रमण भगवान् महावीर १-प्रश्न-सुबाहुकुमार पूवभव में कौन था? उत्तर-एक प्रसिद्ध गथापति - गृहस्थ था । २-प्रश्न-इस का नाम क्या था ? उत्तर-सुमुख गाथापति। ३-प्रश्न-इस का गोत्र क्या था? उत्तर-(सूत्रसंकलन के समय छूट गया है) ४-प्रश्न-इस ने क्या दान दिया? उत्तर-सुदत्त अनगार को आहार दिया था। ५-प्रश्न-इस ने क्या खाया था ? . उसर-मानवोचित सात्त्विक भोजन । ६-प्रश्न-इस ने क्या कृत्य किया था ? उत्तर -भावनापुरस्सर दानकार्य किया था। (१) भावना के सम्बन्ध में निम्नोक्त वीरवाणी मननीय है भावणाजोगसुद्धप्पा, जले नावा हि आहिया । नावा व तीरसंपन्ना, सव्वदुक्खा तिउदृह ॥ (सूयगडांगसूत्र श्रुतस्कंध १. अ० १५, गाथा ६) For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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