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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम अध्याय ] Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir हिन्दी भाषा टीका सहित । १ - अनुकम्पादान । २ संग्रहदान । ३ भयदान | ४ - कारुण्यज्ञान । ५ - लज्जादान । ६ - गर्वदान । ७ - अथर्मदान । ८ - धर्मदान । ९ - करिव्यतिदान | १० - कृतान | १- किसी दीन दुःखी पर दया करके उस की सहायतार्थ जो दान दिया जाता है, उसे 'अनुकम्पादान कहते हैं । जैसे भूखे को अन्न, प्यासे को पानी और नंगे को वस्त्र आदि का प्रदान करना । व्यसनप्राप्त मनुष्यों को जो दान दिया जाता है, उसे २ संग्रहदान कहते हैं । श्रथवा बिना भेद भाव से किया गया दान संग्रइदान कहलाता है। 1 २ ३- भय के कारण जो दान दिया जाता है, उसे उभयदान कहते हैं। जैसे कि ये हमारे स्वामी के गुरु हैं, इन्हें श्राहारादि न देने से स्वामी नाराज़ हो जाएगा, इस भय से साधु को श्राहार देना | ४ - किसी प्रियजन के वियोग में या उस के मर जाने पर दिया गया दान कारुण्यदान कहलाता है । - ५ - लज्जा के वश हो कर दिया गया दान ४ लज्जादान कहलाता है। जैसे यह साधु हमारे घर आये हैं, यदि इन्हें आहार न देंगे तो अपकीर्ति होगी, इस विचार से साधु को आहार देना । ६ - बात पर चढ़ कर अर्थात् गर्व या अहंकार से जो दान दिया जाता है वह "गर्वदान है । जैसे - जोश में आकर एक दूसरे की स्पर्धा में भांड आदि को देना । 1 ७ - अधर्म का पोषण करने के लिये जो दान दिया जाता है उसे धर्मदान कहते हैं । जैसेविषयभोग के लिये वेश्या आदि को देना या चोरी करवाने अथवा झूठ बुलवाने के लिये देना । ८ - धम के पोषणार्थ दिया गया दान धर्मदान है। जैसे- सुपात्र को देना । त्यागशील मुनिराजों को धर्म के पोषक समझ कर श्रद्धापूर्वक आहारादि का प्रदान करना । ९ - किसी उपकार की आशा से किया गया दान ' करिष्यतिदान कहलाता है । 1 १० - किसी उपकार के बदले में किया गया दान 'कृतदान है । अर्थात् इस ने मुझे पढ़ाया है । इस ने मेरा पालनपोषण किया है. इस विचार से दिया गया दान कृनदान कहलाता है। चौथा प्रश्न भगवान गौतम को - दस दानों में से सुबाहुकुमार ने कौनसा दान दिया था ? - इस जिज्ञासा का संसूचक है । [ ६१३ पांचवां प्रश्न भोजन से सम्बन्ध रखता है । संसार में दो प्रकार के जीव है। एक वे हैं जो खाने के लिये जीते हैं, दूसरे वे जो जीने के लिये खाते हैं । पहली कक्षा के जीवों की भावना यह रहती है कि यह शरीर खाने के लिये बना है और संसार में जितने भी खाद्य पदार्थ है सब मेरे ही खाने के लिये हैं, इस लिये For Private And Personal (१) कृपणेऽनाथदरिद्र व्यसनप्राप्ते च रोगशोकहते । यद्दीयते कृपार्थादनुकम्पा तद्भव होनम् ||१|| (२) श्रभ्युदये व्यसने वा यत्किञ्चिद्दीयते सहायार्थम् । तत्संग्रहतोऽभिमतं मुनिभिर्दानं न मोक्षायं ॥ १ ॥ (३) राजारक्षपुरोहितमधुमुवमावल्लदण्डपाशित्रु च । यद्दीयते भयार्थात्तद्भयदानं बुधैर्ज्ञेयम् ॥ १॥ (४) अभ्यर्थितः परेण तु यद्दानं जनसमूहमध्यगतः । परचितरक्षणार्थं लज्जायास्तद्भवेद्दानम् ॥१॥ (५) नर्तकष्टकेभ्यो दानं सम्बन्धिबन्धुमित्रेभ्यः । यद्दीयते यशांऽर्थं गर्वेण तु तद्भवेद्दानम् ॥१॥ (६) हिंसानृतचौर्योद्यतपरदारपरिग्रहप्रसक्तेभ्यः । यद्दीयते हि तेषां तज्जानीयादधर्माय ||१|| (७) समतृणमणिमुक्तेभ्यो यद्दानं दीयते सुपात्रेम्यः । अक्षयमतुलमनन्तं तद्दानं भवति धर्माय || २ || (८) करिष्यति कंचनोपकारं ममाऽयमिति बुद्धया यद्दानं तत्करिष्यतीति दानमुच्यते । (९) शतशः कृतोपकारो दत्त' च सहस्रशो ममानेन । श्रहमपि ददामि किञ्चित्प्रत्युपकाराय तद्दानम् ॥
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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