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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [६०५ प्रस्तुत सूत्र में हस्तिशीष नगर के बाहिर पुष्पकर एडक उद्यान में भगवान महावीर स्वामी का पधारना, उन के दर्शनार्थ जनता तथा अदीनशत्रु आदि का आना और उन के चरणों में उपस्थित हो कर सुबाहुकुमार का देश विरति-श्रावधम को अंगीकार करना आदि बातों का उल्लेख किया गया है । अब सूत्रकार अग्रिम सूत्र में सुबाहुकुमार के रूप लावण्य से विस्मय को प्राप्त हुए भगवान् के प्रधान शिष्य श्री गौतम स्वामी की जिज्ञासा के विषय में प्रतिपादन करते हैं मूल- 'तेणं कालेणं तेणं समएणं जट्ट अंतेवासी इंदभूती जाव एवं क्यासीअहो णं भंते ! सुबाहुकुमारे इ8 इदुरूवे कंते कंतरूवे पिए पियरूवे मणुएणे मणुएणरूवे मणामे मणापरूवे सोमे सुभगे पियदंसणे सुरूवे । बहुजणस्य वि य णं भंते ! सुबाहुकुमारे इ8 जाव सुरूवे । साहुजणस्स वि य णं भंते ! सुबाहुकुमारे इ8 जाव सुरूवे । सुबाहुणा भंते ! कुमारेणं इमा इमारूवा उराला माणुसरिद्धी किरणा लद्धा ? किएणा पत्ता ? किराणा अभिसमन्नागया ? कोवा एस पासी पुत्वभवे ? जाव समन्नागया ? __पदार्थ-तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय में। जे?- ज्येष्ठ-प्रधान । अंतेवासी-शिष्य । इंदभूती-इन्द्रभूति । जाव-यावत् । एवं-इस प्रकार । वयासी-कहने लगे । अहो !-अहो-आश्चर्य है । णं-वाक्यालंकार में है। भंते !- हे भगवन् ! । सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार । इढे - इष्ट । इट्ठरुवे-इष्टरूप । कन्ते - कान्त । कन्तरूवे-कान्तरूप । पिए-प्रिय । पियरूवे-प्रियरूप । मणुगणे - मनोज्ञ । मणुराणस्वे--मनोजरूप । मणामे-मनोम । मणामरूवे - मनोमरूप । सोमे- सोमसौम्य । सुभगे-सुभग । पियदसणे - प्रियदर्शन, और । सुरुवे-सुरूप है । भंते !-- हे भगवन् । बहुजणस्स वि य -और बहुत से जनों को भी। सुबाहुकुमारे सुबाहु कुमार । इट्टे जाव- इष्ट यावत् । सुरुवेसुरूप है । भंते ! हे भगवन् ! । साहुजणस्त विय णं-साधुजनों को भी। सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार । इ? - इष्ट ! इट्ठरुवे- इष्टरूप । जाव-यावत् । सुरुवे-सुरूप है । सुवाहुणा-सुबाहु । कुमारेणंकुमार ने । भंते ! हे भगवन् ! । इमां-यह । पयारूवा- इस प्रकार की । उराला- उदार - प्रधान । माणुसरिद्धी-मानवी ऋद्धि । किरणा--कसे । लद्धा ? - उपलब्ध की ? । किराणा-कैसे । पसा !- प्राप्त को ? और । किराणा- कैसे । अभिसमरणागया ?--समुपस्थित हुई ? । को वा-और कौन । एस- यह । पुव्वभवे - पूर्वभव में । आसि-या। जाव-यावत् । समन्नागया-मानव ऋद्धि समुपस्थित हुई। ___ मूलार्थ-उस कल तथा उस समय भगवान के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम अनगार यावत् इस प्रकार कहने लगे-अहो ! भगवन ! सुबाहुकुमार बालक बड़ा ही इष्ट, इष्टरूप, कान्त, कान्तरूप, प्रिय, प्रियरूर, मनोज्ञ, मनोज्ञरूप, मनोम, मनोमरूप, सौम्य, सुभग, प्रियदर्शन और सुरूप-सुन्दर रूप वाला है । भगवन् ! यह सुबाहुकुमार माधुजनों को भी इछ, इष्टरूपं यावत् सुरूर लगता है . (१) छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूतिर्यावदेवमवादीत् -अहो भदन्त ? सुबाहुकुमार इष्ट इष्टरूपः कान्तः कान्तरूपः प्रियः पियरूपः मनोज्ञ: मनोज्ञरूप: मनोम: मनोमरूप: सोमः सुभग: प्रियदर्शनः । बहुजनस्यापि च भदन्त ! सुबाहुकुमार इष्टो यावत् सुरूपः । साधुजनस्यापि च भदन्त ! सुबाहुकुमार इष्ट इष्टरूप: यावत् सुरूप: । सुबाहुना भदन्त ! कुमारेणेयमेतद्रूपा मानुषद्धिः केन लब्धा ?, केन प्राप्ता ?, केनाभिसमन्वागता १ को वा एष आसीत् पूर्वभवे ? यावत् समन्वागता । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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