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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित। [६०१ हे समृद्धिशाली महाराज ! तुम्हारी जय हो, हे कल्याण करने वाले महाराज ! तुम्हारी विजय हो. आप फूल और फलें । न जीते हुए शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें, जो जीते हुए हैं उन का पालन पोषण करें और सदा जीते हुओं के मध्य में निवास करें। देवों में इन्द्र के समान, असुरों में चमरेन्द्र के समान, नागों में धरणेन्द्र के समान, ताराओं में चन्द्रमा के समान, मनुष्यों में भरत चक्रवर्ती के समान बहुत से वर्षों, बहुत से सेंकड़ों वर्षों, बहुत से हजार वर्षों, बहुत से लाखों वर्षों तक निर्दोष परिवार आदि से परिपूर्ण और अत्यन्त प्रसन्न रहते हुए श्राप उत्कृष्ट आयु का उपभोग करें, इष्ट जनों से सम्परिवृत होते हुए चम्पानगरी का तथा अन्य बहुत से ग्रामों - गांवों. श्राकरों- खानों, नगरों-शहरों, खेटो ( जिस का कोट मिट्टी का बना हुआ हो उसे खेट कहते हैं ), कर्वटोंछोटी बस्ती के स्थानों, मडम्बों-भिन्न २ बस्ती वाले स्थानों, द्रोणमुखों-जल और स्थल के मार्ग से युक्त नगरों, पत्तनों-केवल जल के अथवा स्थल के मार्ग वाले नगरों, आश्रमों-तापस आदि के स्थानों, निगमों-व्यापारियों के नगरों, संवाहों-दुर्गविशेषों जहां किसान लोग सुरक्षा के लिये धान्यादि रखते हैं, सन्निवेशों-नगर के बाहिर के प्रदेशों, जहां प्रामीर-दूध बेचने वाले लोग रहते हैं अथवा यात्रियों के पड़ाव, इन सब का आधिपत्य,' अग्रेसरत्व, भतृत्व, स्वामित्व, महत्तरकत्व, आशेश्वरसैनापत्य कराते हुए अथवा स्वयं करते हुए आप बहुत से नाटकों, गीतों, वादित्रों, वीणाओं, तालियों और मेत्र जैसी आवास करने वाले तथा चतुर पुरुषों के द्वारा बजाये गये मृदङ्गों के शब्दों के साथ विशाल भोगों का उपभोग करते हुए विहरण करेंइस प्रकार से कहने के साथ २ "- आप की जय हो, विजय हो-" ऐसे शब्द बोलते थे। इस के अनन्तर हज़ारों नेत्रमालाओं - नयनपंक्तियों के द्वारा अवलोकित, हज़ारों हृदयमालाओं के द्वारा अभिनन्दित-प्रशंसित, हज़ारों मनोरथमालाओं के द्वारा अभिलषित, हज़ारों व वनमालात्रों के द्वारा अभिस्तुत श्राप कान्ति और सौभाग्य रूप गुणों को प्राप्त करें। इस भाँति प्रार्थित, हज़ारों नरनारियों की हजारों अंजलिमालाओं को दाहिने हाथ से स्वीकार करते हुए, अति मनोहर वचनों के द्वारा नागरिकों से क्षेम कुशल आदि पूछते हुए, हज़ारों भवनपंक्तियों को लांघते हुए श्रेणिकपुत्र चम्पानरेश कुणिक चम्पानगरी के मध्य में से निकलते हुए जहां पर पूर्णभद्र उद्यान था, वहां पर पाए, आ कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के योड़ी दूर रहने पर छत्रादिरूप तीर्थंकरों के अतिशय (तीर्थ करनामकर्मजन्य विशेषताए) देख कर प्रधान हाथी को ठहरा कर नीचे उतरते हैं और १-- खड्ग-तलवार, २-छत्र, ३-मुकु, ४ -उपानत्-जूता, तथा ५-चमर, इन पांच राजचिह्नों को छोडते हैं, तथा जहां श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे वहां पर पांच प्रकार के अभिगमोर के द्वारा उन के सन्मुख उपस्थित होते हैं । तदनन्तर भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणापूर्वक वन्दना तथा नमस्कार करते हैं, तदनन्तर कायिक, वाचिक और मानसिक उपासना के द्वारा भगवान् महावीर स्वामी की पयुपासना - भक्ति करते हैं, यह है चम्पानरेश कूणिक का दर्शनयात्रावृत्तान्त जो कि श्री औपपातिक सूत्र में बड़े विस्तार के साथ वर्णित हुआ है । प्रस्तुत में इतनी ही भिन्नता है कि वहां हस्तिशीषनरेश महाराज अदीन रात्रु पुष्पकरएडक उद्यान में जाते हैं । नगर, राजा, रानी तथा उद्यानगत भिन्नता के अतिरिक्त अवशिष्ट प्रभुवीर दर्शन यात्रा का वृत्तान्त समान है अर्थात् श्री औपपातिक सूत्र में चम्पानगरी, श्रोणिकपुत्र महाराज कूणिक, सुभद्राप्रमुख रानियां और पूर्णभद्र उद्यान का वर्णन है, जबकि सुबाहुकुमार के इस अध्ययन में हस्तिशीर्ष नगर, महाराज अदीनशत्रु, धारिणीप्रमुख रानियाँ पुष्पकरण्डक उद्यान का उल्लेख है। (१) आधिपत्य आदि शब्दों का अर्थ पृष्ठ १९८ पर लिखा जा चुका है। (२) पांच अभिगमों का तथा (३) तीन उपासनाओं का अर्थ पृष्ठ २९ पर लिखा जा चुका है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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