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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय) हिन्दी भाषा टीका सहित । -समणे भगवं०-यहां का बिन्दु- महावीरं श्राइगरं- इत्यादि पदों का परिचायक है । इन पदों का अर्थ ५४३ से ले कर ५४८ तक के पृष्ठों पर लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद तृतीयान्त हैं जबकि प्रस्तुत में द्वितीयान्त । विभक्तिगत विभिन्नता के अतिरिक्त अर्थगत कोई भेद नहीं है । - जहा कूणिए-यथा कूणिकः- इस का तात्पर्य यह है कि जिस तरह चम्पा नामक नगरी से महाराज कूणिक बड़ी सजधज के साथ भगवान् को वन्दना करने के लिये गये थे, उसी भान्ति महाराज अदीनशत्रु भी हरिशीर्ष नगर से बड़े समारोह के साथ भगवान् को वन्दना करने के लिये गये। चम्पानरेश कूणिक के गमनसमारोह का वर्णन श्री औषपातिक सूत्र में किया गया है, पाठकों की जानकारी के लिये उस सारांश नीचे दिया जाता है श्रेणिकपुत्र महाराज कूणिक मगधदेश के स्वामी थे । चम्पानगरी उन की राजधानी थी। एक बार अाप को एक सन्देशवाहक ने आकर यह समाचार दिया कि जिन के दर्शनों की अाप को सदैव इच्छा बनी रहती है, वे श्रमण भगवान् महावीर स्वामी चम्पानगरी के बाहिर उद्यान में पधार गये हैं। चम्पानरेश इस सन्देश को सुन कर पुलकित हो उठे । सन्देशवाहक को पर्याप्त पारितोषिक देने के अनंतर स्नानादि से निवृत्त हो तथा वस्त्रालंकारादि से अलंकृत हो कर वे अपने सभास्थान में आये, वहां आकर उन्हों ने सेनानायक को बुलाया और उस से कहा कि हे भद्र ! प्रधान हाथी को तैयार करो तथा घोड़ों, हाथियों रथों और उत्तम योद्धाओं वाली चतुरगिणी सेना को सुसज्जित करो। सुभद्राप्रमुख रानियों के लिये भी यान आदि बिल्कुल तैयार करके बाहिर पहुंचा दो और चम्पानगरी को हरतरह से स्वच्छ एवं निर्मल बना डालो । जल्दी जाओ और अभी मेरी इस आज्ञा का पालन करके मुझे सूचित करो। इस के पश्चात् सेनानायक ने राजा की इस श्राज्ञा का पालन कर के उन्हें संसूचित किया । चम्पानरेश अपनी आज्ञा के पालन की बात जान कर बड़े प्रसन्न हुए। तदनन्तर महाराज कूणिक व्यायामशाला में गये । वहां पर नाना विधियों से व्यायाम करने के अनन्तर शतपाक और सहस्रपाक आदि सुगन्धित तेलों के द्वारा उन्हों ने अस्थि, मांस, त्वचा और रोमों को सुख पहुं वाने वाली मालिश कराई । तदनन्तर स्नानगृह में प्रवेश किया और वहां स्नान करने के पश्चात् उन्हों ने स्वच्छ वस्त्रों और उत्तमोत्तम आभूषणों को धारण किया । तदनन्तर गणनायक-गण का मुखिया, दण्डनायक -कोतवाल, राजा-मांडलिक ( किसी प्रदेश का स्वामी), ईश्वर-युवराज, तलवर - राजा ने प्रसन्न होकर जो पट्टबन्ध दिया है उस से विभूषित, माडम्बक - मडम्ब (जो वस्ती भिन्न २ हो ) के नायक, कौटुम्बिक -कुटुम्बों के स्वामी, मन्त्री - बजार, महामन्त्री--प्रधानमंत्री, ज्योतिषी- ज्योतिष विद्या के जानने वाले, दौवारिक - प्रतिहारी (पहरेदार), अमात्य-राजा की सारसंभाल करने वाला, चेट - दास, पीठमर्द -अत्यन्त निकट रहने वाला सेवक अथच मित्र, नगर-नागरिक लोग, निगम-व्यापारी, श्रेष्ठी- मेठ, सेनापति- सेना का स्वामी, सार्थवाह -- यात्री व्यापारियों का मुखिया, दूतराजा का श्रादेश पहुंचाने वाला, सन्धिपाल - राज्य की सीमा का रक्षक-इन सब से सम्परिवृत -घिरे हुए चम्पानरेश कूणिक उपस्थानशाला -सभामंडप में आकर हस्तिरत्न पर सवार हो गये। जिस हाथी पर चम्पानरेश बैठे हुए थे उस के आगे आगे-१-स्वस्तिक, २-श्रीवत्स, ३-नन्दावर्त, ४-वर्धमानक, ५-भद्रासन, ६-कलश-घड़ा, ७-मत्स्य,८-दर्पण - ये आठ मांगलिक पदार्थ ले जाए जा रहे थे । हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेना यह चतुरङ्गिपी सेना उन के साथ थी. तथा उन के साथ ऐसे बहुत से पुरुष चल रहे थे जिन के हाथों में लाठियां, भाले. धनुष, चामर, पशुओं को बांधने की रज्जुएं, पुस्तके, फलके -ढालें, अासनविशेष, वीणाएं, आभूषण रखने के डिब्बे अथवा ताम्बूल आदि रखने के डिब्बे थे । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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