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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्यय] हिन्दी भाषा टीका सहित । |५७९ करने में ज़रा संकोच नहीं किया। वास्तव में न्याय की रक्षा वीर ही कर सकता है, कायर के बस का वह काम नहीं होता। इस के अतिरिक्त अहिंसा के अग्रगण्य सन्देशवाहक भगवान् महावीर स्वामी तथा भारत के अन्य महामहिम महापुरुषों का अपना साधक जीवन भी-अहिंसा वीरो का धर्म है-इस तथ्य को प्रमाणित कर रहा है। जिन जंगलों को शेर, अपनी भीषण मर्मवेदी गर्जनाओं से व्याप्त कर रहे हों, जहां हाथी चिंघाड़े मार रहे हो, इसी भान्ति बाघ आदि अन्य हिंसक पशुओं का जहां साम्राज्य हो, उन जंगलों में एक कायर व्यक्ति अकेला और खाली हाथ ठहर सकता है ?, उत्तर होगा, कभी नहीं, परन्तु अहिंसा की सजीव प्रतिमाएं भगवान् महावीर आदि महापुरुष इन सब परिस्थितियों में निर्भय, प्रसन्न तथा शान्त रहते थे । अधिक क्या कह शाजा पीर कहा जाने वाला मानव जिन देवताओं के मात्र कथानक सुन कर कंपित हो उठता है. रात को सुख से सो भी नहीं सकता, उन्हीं देवताओं के द्वारा पहुंचाए गए भीषणातिभीषण, असह्य दुःख अहिंसा के अग्रदतों ने हंस २ कर झेले हैं । सारांश यह है कि अहिंसा वीरों का धर्म है, उस में कायरता और दुर्बलता को कोई स्थान नहीं है । एक हिंसक से अहिंसक बनने की आशा तो की जा सकती है परन्तु कायर कभी भी अहिंसक नहीं बन सकता। २- सत्याणवत-इसे स्थूलमृषावादविरमणव्रत भी कहा जाता है । मृषावाद झूठ को कहते हैं. वह सूक्ष्म और स्थूल इन भेदों से दो प्रकार का होता है । मित्र आदि के साथ मनोरंजन के लिए असत्य बोलना, अथवा कोई व्यक्ति बैठा २ ऊघने लग गया, निकटवर्ती कोई मनुष्य उसे सावधान करता हुआ बोल उठाअरे ! सोते क्यों हो?, इसके उत्तर में वह कहता है, नहीं भाई ! तुम्हारे देखने में अन्तर है, मैं तो जाग रहा हूं.. इत्यादि वाणीविलास सूक्ष्म मृषावाद के अन्तर्गत होता है । स्थूल मृषावाद पांच प्रकार का होता है जो कि निम्नोक्त है १-कन्यासम्बन्धी-अर्थात् कुल, शील, रूप आदि से युक्त, सर्वांगसम्पूर्ण. सुन्दरी, निर्दोष कन्या को कुलादि से हीन बतलाना तथा कुलादि से हीन कन्या को कुलादि से युक्त बतलाना कन्यालीक है। २-भूमिसम्बन्धी-अर्थात् उपजाऊ भूमि को अनुपजाऊ कहमा तथा अनुपजाऊ को उपजाऊ कहना, कम मूल्य वाली को बहु मूल्य वाली और बहु मूल्य वाली को कम मूल्य वाली कहना भूमि-अलीक है । ३-गोसम्बन्धी-अर्थात् गाय, भैंस, घोड़ा आदि चौपायों में जो प्रशस्त हों उन्हें अप्रेशस्त कहना और जो अप्रशस्त हैं उन को प्रशस्त कहना । अथवा-बहु मूल्य वाले गाय आदि पशुओं को अल्प मूल्य वाले बताना तथा अल्प मूल्य वाले को बहुमूल्य बताना । अथवा-अधिक दूध देने वाले गाय भैंस आदि पशओं को कम दुध देने वाला तथा अल्प दूध देने वालों को अधिक दूध देने वाला कहना, इसी भान्ति शीघ्रगति वाले घोड़े आदि पशों को कम गति वाले और कम गति वालों को शीघ्रगति वाले कहना, इत्यादि सभी विकल्प गोलीक के अन्तर्गत हो जाते हैं ४-न्याससम्बन्धी-अर्थात् कुछ काल के लिए किसी विश्वस्त पुरुष आदि के पास सोना, चान्दी, रुपया, वस्त्र, धान्यादि को पुनः वापिस लेने के लिए रखने का नाम न्यास या धरोहर है । उस के सम्बन्ध में झूठ बोलना न्यास-अलीक है । तात्पर्य यह है कि किसी की धरोहर रख कर, देने के समय तुम ने मेरे पास कब रखी थी ?, उस समय कौन साक्षी-गवाह था ?. मैं नहीं जानता. भाग जाओ-ऐसा कह देना न्याससम्बन्धी असत्य भाषण होता है। ५-सातिसम्बन्धी-अर्थात् झूठी गवाही देना। तात्पर्य यह है कि प्रांखों से देख लेने पर For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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