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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हिन्दी भाषा टीका सहित । प्रथम अध्याय ] वर्णन से जान लेनी चाहिये । - रिद्ध० - यहां के बिन्दु से त्थिमियसमिद्ध े पमुइयजण जाणवये श्रणजनम हलसय सहस्त्रसंकि विकिट्ठलट्ठपण तसेउसीमें कुक्कुडलंडेयगामपउरे उच्छुजवसालिकलिये गोमहिसगवेल गप्पभूते श्रायारवन्त चेइयजुवइविविहसन्निविठ्ठवहुले उक्कोडियगायगं ठिभेयभडतक्करखंडक्रहिए खेमे विदवे सुभिकखे वीसत्यसुहावा से श्ररोगकोडिकुटुबिया इराणणिव्वयसुहे जडगजल्ल मल्लमुट्ठिय वेलंबयक गप वगलासग श्री इक्खगलं स्वमं खलू इल्लतु ववीणिय अरोगता लायरा-चरिये श्रारामुज्जाणगडत लागदीहियवपिणिगुणोववेये नंदणवणसन्निभप्पगासे उग्विद्धविउलगंभीरायफल चक्कगयमुसु ढिश्रोरोहसयग्धिजमलकवा डघणदुप्पवेसे धणुकुडिलवं कपागारपरि Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ५६३ कविसीसवहरइय संठिया विरायमाणे श्रहालयच रियदारगोपुर तोरण उरणयसुविभत्तरायमग्गे यारियरयदढफ लिहइंदकीले विवविणिच्छेत्त सिप्पियाइएगा णिव्वयसुहे सिंघाडगतिगच उक्क चच्चरपगियावण विविह्वत्थुपरिमरिडर सुरम्मे नरवइपविइरणम हिवइपहे रोग वरतुरगमत्तकु जररपहकर खीय संद माणीया इराण जाए जुग्गे विमडलणवण लियिसोभियजले पण्डुरवरभवणसरिणमहिये उत्तापयपेच्छपिज्जे पासादीये दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिकवे- - इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन पदों का अर्थ निम्नोक है For Private And Personal वह नगर ऋद्ध - भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित – स्वचक्र और परचक्र के भय से विमुक्त तथा समृद्ध – धन धान्यादि से परिपूर्ण था । उस में रहने वाले लोग तथा जानपद - बाहर से आए हुए लोग, बहुत प्रसन्न रहते थे । वह मनुष्यसमुदाय से आकीर्ण - व्याप्त था, तात्पर्य यह है कि वहां की जनसंख्या अत्यधिक थी । उस की सीमाओं पर दूर तक लाखों हलों द्वारा क्षेत्र - खेत अच्छी तरह बाहें जाते थे तथा वे मनोश, किसानों के अभिलषित फल के देने में समर्थ और बीज बोने के योग्य बनाये जाते थे । उस में कुक्कुटों, मुर्गों और सण्डों-सांडों के बहुत से समूह रहते थे । वह इच्क्षु - गन्ना, यव- जौ और शालि - धान इन से युक्त था । उनमें बहुत सी गौएं, भैंसे और भेडें रहती थीं । उस में बहुत से सुन्दर चैत्यालय और वेश्याओं के मुहल्ले थे । वह उत्कोच - रिश्वत लेने वालों, ग्रन्थिभेदकों - गांठ कतरने वालों, भटों - बलात्कार करने वालों, तस्करों - चोरों और खण्डरों - कोतवालों अथवा कर - महसूल लेने वालों से रहित था, अर्थात् उस नगर में ग्रन्थिभेदक आदि लोग नहीं रहते थे । वह नगर क्षेमरूप था, अर्थात् वहां किसी का अनिष्ट नहीं होता था । वह नगर निरूपद्रव - राजादिकृत उपद्रवों से रहित था । उस में भिक्षुकों को भिक्षा की कोई कमी नहीं थी। वह नगर विश्वस्त - निर्भय अथवा धैर्यवान् लोगों के लिये सुखरूप आवास वाला था, अर्थात् उस नगर में लोग निर्भय और सुखी रहते थे वह नगर अनेक प्रकार के कुटुम्बियों और सन्तुष्ट लोगों से भरा हुआ होने के कारण सुखरूप था। नाटक करने वाले, नृत्य करने वाले, रस्से पर खेल करने वाले अथवा राजा की स्तुति करने वाले चारण, मल्ल-- पहलवान, मौष्टिक - मुष्टियुद्ध करने वाले, विदूषक, कथा कहने वाले और तैरने वाले, रामे गाने वाले अथवा "प की जय हो इस प्रकार कहने वाले, ज्योतिषी, बांसों पर खेल करने वाले, चित्र दिखा कर भिक्षा मांगने वाले, तू नामक वाद्य बजाने वाले, वीणा बजाने वाले, ताली बजा कर नाचने वाले आदि लोग उस नगर में रहते थे । श्राराम - बाग़, उद्यान - जिस में वृक्षों की बहुलता हो और जो उत्सव आदि के समय बहुत लोगों के उपयोग में लाया जाता हो, कूप- कूत्रां, तालाब, बावड़ी, उपजाऊ खेत इन सब की रमणीयता श्रादि गुणों से वह नगर युक्त था । नन्दनवन - एक वन जो मेरुपर्वत पर स्थित है, के समान वह नगर शोभायमान था । उस विशाल नगर के चारों ओर एक गहरी खाई थी जो कि ऊपर से चौड़ी और नीचे से संकुचित थी, I ""
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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